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* बत्तीस योग-संग्रह : मोक्ष के प्रति योग, उपयोग और ध्यान के रूप में
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पूर्ण एकाग्रता और निरोध सम्पन्न हो जाता है। इसलिए केवल आत्मोन्मुख निष्कषाय • (उपशान्त) और क्षय (घातिकर्मक्षय) भाव से युक्त चित्त शुक्ल कहलाता है।
शुक्लध्यान का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ 'ध्यानशतक टीका' में हरिभद्रसूरि ने इस प्रकार किया है-“शुचं क्लमयस्तीति शुक्लं = शोकं ग्लपयतीत्यर्थः। ध्यायते चिन्त्यतेऽनेन तत्त्वमिति ध्यानमेकाग्रचित्तनिरोध इत्यर्थः। शुक्लं च तद्ध्यानं शुक्लध्यानम्।" अर्थात् जो शोक (आत्मा-सम्बन्धी समस्त शोच) को क्षय, नष्ट कर देता है, वह शुक्ल है। यानी जिससे आत्मगत शोक की सर्वथा निवृत्ति हो जाए, ऐसा समस्त शोक निवर्तक एकाग्रचित्त निरोधरूप ध्यान शुक्लध्यान है।'
शुक्लध्यान के चार प्रकार और उनका स्वरूप शुक्लध्यान के भी ‘स्थानांगसूत्र' में चार भेद बताए हैं-(१) पृथक्त्व-वितर्कसविचार, (२) एकत्व-वितर्क-अविचार, (३) सूक्ष्मक्रिया-अप्रतिपाती, और (४) व्युपरतक्रिया निवृत्ति अथवा समुच्छिन्न-क्रियानिवृत्ति।
(१) पृथक्त्व-वितर्क-सविचार-जब कोई साधक श्रुतज्ञान के भाधार पर जीव-अजीव आदि पदार्थों का द्रव्य, पर्याय आदि विविध दृष्टियों से पृथक्-पृथक् विश्लेषण करके भेद-प्रधान चिन्तन करता है और उसके इस प्रकार के चिन्तन में एक अर्थ-पदार्थ से दूसरे अर्थ-पदार्थ पर, एक शब्द से दूसरे शब्द पर और एक योग से दूसरे योग पर संचार (चंक्रमण) होता रहता है, तब इस श्रुतज्ञानावलम्बी भेद-प्रधान सविचार (चिन्तन) को पृथक्त्व-वितर्क (श्रुतज्ञान) सविचार शुक्लध्यान कहा जाता है।
धर्मध्यान के और इस ध्यान के अवलम्बन में अन्तर यह है कि धर्मध्यान में तो बाह्य वस्तुओं का अवलम्बन लिया जाता है, जबकि इस प्रथम शुक्लध्यान में मात्र श्रुतज्ञान का ही अवलम्बन लिया जाता है। ___ (२) एकत्व-वितर्क-अविचार-इसमें प्रथम शुक्लध्यान से विपरीत चिन्तन है। दूसरे शुक्लध्यान का साधक श्रुतज्ञान के आधार पर पदार्थों के विविध स्वरूपों का केवल अभेद-प्रधानदृष्टि से चिन्तन करता है। उसके इस चिन्तन में प्रथम शुक्लध्यान की तरह एक अर्थ से दूसरे अर्थ पर, एक शब्द से दूसरे शब्द पर या एक योग से दूसरे योग पर संचरण नहीं होता, किन्तु इस द्वितीय ध्यान का ध्याता
१. (क) 'जैनागमों में अष्टांगयोग' से भाव ग्रहण, पृ. ३४
(ख) ध्यानशतक टीका २. (क) सुक्कझाणे चउव्विहे प. तं.-पुहुत्तवियक्के सवियारी, एगत्तवियक्के अवियारी, सुहुमकिरिए
अप्पडिवाइ, समुच्छिन्नकिरिए अणियट्टी। ____ (ख) पृथक्त्वैकत्ववितर्क-सूक्ष्मक्रियाऽप्रतिपाति-व्युपरतक्रियाऽनिवृत्तीनि। -तत्त्वार्थसूत्र ९/४१
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