________________
समतायोग का पौधा : मोक्षरूपी फल
आपका यह प्रतिदिन का अनुभव है कि चतुर माली जब किसी फलदार पौधे को लगाता है, तब बड़ी उमंग, उत्साह और श्रद्धा से पहले उपजाऊ मिट्टी को समतल और मुलायम बनाता है। उस मिट्टी में से काँटे, कंकड़, झाड़-झंखाड़, निरर्थक घास-फूस निकाल लेता है। उसके बाद उस मिट्टी में वीजारोपण करता है, पानी सींचता है। इतना ही करके वह निश्चिन्त नहीं हो जाता। वह उस बीज के अंकुरित हो जाने के बाद उसकी सुरक्षा के लिए उसके चारों ओर गोल घेरा (थला) बनाता है, ताकि वही पौधा पानी पी सके। साथ ही वह उस पौधे के चारों ओर काँटों की बाड़ लगाता है, ताकि जानवर तथा अन्य कीड़े उस पौधे को नुकसान न पहुँचा सकें। इसके पश्चात् भी वह प्रतिदिन समय-समय पर पौधे की निगरानी रखता है कि पौधे को दीमक न लग जाए; अतिवृष्टि, अनावृष्टि, सूखा, पतझड़ आदि उसकी बढ़ोतरी को रोक न दे। इस प्रकार चतुर माली जब धीरे-धीरे पौधे को लहलहाते, बढ़ते और फूलते-फलते देखता है तो उसकी प्रसन्नता का कोई पार नहीं रहता, उसकी सफलता में चार चाँद लग जाते हैं और जब वह पौधा एक दिन वृक्ष का रूप ले लेता है, उस पर मधुर फल लग जाते हैं और वे फल परिपक्व होकर धरती की गोद में गिरते हैं, जिस धरती माता ने उसे जन्म देकर अंकुरित किया, बढ़ाया, पुष्पित-फलित किया और तब धरती माता से उस भूमि-पुत्र माली को वह मधुर फल प्राप्त हो जाता है। वस्तुतः पौधे के बीजारोपण से लेकर पुष्पित- फलित होने तक माली के अनवरत परिश्रम के कारण ही उसे मधुर फल प्राप्त होता है।
ठीक इसी प्रकार मुमुक्षु और आत्मार्थी साधक जब सर्वकर्ममुक्तिरूप मोक्षफल प्राप्त करना चाहता है तो केवल मनसूबे बाँधने से उसे वह मोक्षफल प्राप्त नहीं हो सकता। मोक्षफल प्राप्त करने के लिए पहले उसे अपनी हृदयभूमि को शुद्ध, कोमल और समतल बनाना पड़ेगा। इसके लिए उसे अपने हृदय में वर्षों से जड़ जमाकर बैठे हुए क्रोध, रोष, द्वेष, अहंकार, मद, माया, दम्भ, लोभ, राग, मोह आदि के काँटों और कंकड़ों को बटोरकर तथा ईर्ष्या, घृणा, आसक्ति, लिप्सा, लालसा, स्पृहा, तृष्णा, कामना, वासना, ममता आदि कँटीली झाड़ियों को उखाड़कर बाहर निकालना होगा और हृदयभूमि को क्षमा, दया, नम्रता, मृदुता, सरलता, सत्यता आदि से मुलायम बनाना होगा । उसे संयम, तप और विवेक के जल से सींचकर
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org