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कर्मविज्ञान : भाग ८ ॐ
आत्म-विश्वास के आधार पर समभाव रखकर संवर और निर्जरा कर सके। हरिकेशवल जैसे शरीर के काले, कुरूप, बेडौल होते हुए भी ज्ञान-दर्शनचारित्र-तपरूप मोक्षमार्ग की साधना-आराधना करके सर्वकर्ममुक्तिरूप मोक्ष को भी प्राप्त कर सके थे। अमनोज्ञ-मनोज्ञ शरीरादि मिलने पर समता में रहे ___ इसी प्रकार समतायोगी साधक रुग्ण, दुर्बल, अशक्त, अनिष्ट शरीरादि का संयोग मिलने पर अरुचि, घृणा, निराशा, निरुत्साह या आत्महत्या का भाव आदि विषमतावर्द्धक दुर्गुणों को मन में स्थान नहीं देता, न ही तीव्र रोगाक्रान्त होने पर शरीर को जल्दी छोड़ने की इच्छा करता है। न ही कालेकलूटे, कुरूप, बुद्धिमन्द अंगहीन, निर्बल लोगों के शरीरादि देखकर उनसे घृणा, द्वेष, दुर्भाव करता है, न ही उन्हें अपमानित करता है। अपने मनोज्ञ शरीरादि का वियोग होते देखकर भी उसे रंजोगम नहीं होता। मनोज्ञ-अमनोज्ञ इन्द्रिय-विषयों के संयोग-वियोग में समभाव रखे __ इसी प्रकार मनोज्ञ इन्द्रिय-विषयों को पाने के लिए समतायोगी साधक लालायित नहीं होगा, न उनके लिए मन में बेचैन होगा। दूसरों के पास अत्यधिक विषयोपभोग के साधन देखकर वह उनसे ईर्ष्या, असूया, द्वेष आदि करेगा अथवा जिनके पास पर्याप्त इन्द्रिय-विषयभोगों के साधन नहीं हैं अथवा विषयों को प्राप्त करने की जिनकी शक्ति क्षीण या नष्ट हो गई है, उनके प्रति भी वह घृणा, द्वेष, दुर्भाव या तिरस्कारबुद्धि नहीं रखेगा। समत्व-साधना के लिए अनायास आवश्यक इन्द्रिय-विषय या साधन प्राप्त होने पर मन में अहंकार, रागभाव, मोह या आसक्ति नहीं आने देगा अथवा अभीष्ट आवश्यक इन्द्रिय-विषयोपभोगों के साधनों के वियोग हो जाने पर भी उसके मन में किसी प्रकार की ग्लानि, चिन्ता, दीनता आदि नहीं आएगी अथवा अमनोज्ञ, अनिष्ट इन्द्रिय-विषयों का संयोग होने पर भी वह
आर्त-रौद्रध्यानवश नहीं होगा, मन में ग्लानि या अरुचि नहीं लाएगा, अपितु समभाव से वह उन अनिष्ट विषयों को अपनाएगा, समत्व को नहीं खोयेगा। अभीष्ट इन्द्रिय-विषयों को पाकर वह विलासिता, कामभोगवृद्धि, पापवृद्धि, आलस्य, प्रमाद आदि विषमतावर्द्धक कृत्यों में नहीं लगाएगा, किन्तु समता, क्षमा, दया आदि सद्धर्माचरण एवं तप व संयम की आराधना में लगाएगा।' १. (क) देखें-'मेरी भावना' में इष्ट-वियोग अनिष्ट-योग में सहनशीलता दिखलावें (ख) कोई बुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी आवे या जावे।
लाखों वर्षों तक जीऊँ या, मृत्यु आज ही आ जावे॥ अथवा कोई कैसा ही भय, या लालच देने आवे। तो भी न्यायमार्ग से मेरा, कभी न पद डिगने पावे॥
-मेरी भावना
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