________________
- ससभंगी
[३३ के पता लग जाने से हम वर्तमान परिस्थिति के अनुरूप नियमों का चुनाव कर सकते हैं । इसलिये किसी नियम को बुरा मला कहने की आवश्यकता नहीं है। सिर्फ वर्तमान परिस्थिति के अनुकूल या प्रतिकूल कहने की आवश्यकता है। इससे किसी धर्म की निन्दा किये बिना हम सत्यकी प्राप्ति कर सकते हैं। सप्तभंगी का यही वास्तविक उपयोग है, जिसकी तरफ जैनलखकों का ध्यान प्राय: आकर्षित नहीं हुआ। सप्तभंगी का उपयोग करने के लिये इसी प्रकार के विवेचन की आवश्यकता है।
सप्तभंगी में मूल भंग तीन हैं । अस्ति, नास्ति और अवक्तव्य । बाकी चार भंग तो इन्हीं को मिलाकर बनाये गये हैं।
अवक्तव्य शब्दका सीधा अर्थ तो यही है कि 'जो कहा न जा सके' परन्तु कहे न जा सकने के कारण दो हैं । एक तो यह कि हम उसे ठीक ठीक नहीं जानते इसलिये नहीं कह सकते; दूसरा यह कि ठीक ठीक जानते तो हैं, परन्तु उसको निर्दिष्ट करने के लिये हमारे पास शब्द नहीं हैं । जैसे-हमसे कोई पूछे कि विश्व कितना महान् है ? तो हम कहेंगे कि 'कह नहीं सकते' । यहाँ पर कह न सकने का कारण हमारा अज्ञान अर्थात् ज्ञान की अशक्ति है । परन्तु जब कभी हमें ऐसी वेदना होती है जिसे हम कह नहीं सकते, हम इतना तो कहते हैं कि वेदना होती है, बहुत वेदना होती है, परन्तु वह कैसी होती है यह नहीं बतला पाते क्योंकि वेदना के सब प्रकारों और सब मात्राओं के लिये भाषा में शब्द नहीं हैं, इसलिये यहाँ भी हमें अवक्तव्य शब्द से ही कहना पड़ता है।