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उपयोगों का स्वरूप
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प्रश्न- कल्पना होने से असत्य होना भले ही अनिवार्य न हो, परन्तु कल्पना को प्रत्यक्ष कभी नहीं कह सकते ज्ञान परोक्ष होंगे सिर्फ दर्शन ही प्रत्यक्ष कहलायगा ।
इसलिये सभी
उत्तर - वास्तव में प्रत्यक्ष तो दर्शन ही है, फिर भी दर्शन में प्रत्यक्ष शब्दका व्यवहार नहीं होता इसका कारण यह है कि कोई दर्शन परोक्ष नहीं होता । प्रत्यक्ष और परोक्ष ये परस्पर सापेक्ष शब्द हैं । जहाँ परोक्ष का व्यवहार नहीं, वहाँ प्रत्यक्ष का व्यवहार निरुपयोगी है । दूसरी बात यह है कि प्रत्यक्ष और परोक्ष का भेद परपदार्थों को जानने की अपेक्षा से है । आत्मग्रहण की दृष्टि से न तो कोई अप्रमाण (१) होता है न परे।क्ष (२) । इसलिये पर पदार्थ के ग्रहण की स्पष्टता अस्पष्टता से प्रत्यक्ष परोक्ष का व्यवहार करना चाहिये ।
प्रश्न- दर्शन की अपेक्षा तो सभी ज्ञान परोक्ष हुए तब किसी ज्ञानको प्रत्यक्ष और किसी को परोक्ष कैसे कहा जाय ?
उत्तर - जिस ज्ञान में किसी दूसरे ज्ञानकी जरूरत न हो अथवा अनुमानादिसे स्पष्ट हो वह प्रत्यक्ष और इससे विपरीत परोक्ष | स्पष्टता अस्पष्टता का विचार हमें दर्शन की अपेक्षा नहीं, किन्तु एक ज्ञान से दूसरे ज्ञानकी अपेक्षा करना है । आँखों से जो हमें कोई पदार्थ दिखाई देता है उसका ज्ञान, दर्शन के समान स्पष्ट भले ही न हो परन्तु अनुमान आदि से स्पष्ट है इसलिये प्रत्यक्ष है 1
(२) मात्र प्रमेयापेक्षायां प्रमाणाभावनिश्वः । बहिः प्रमेयापेक्षायां प्रमाणं तन्निभं च ते । आप्तमीमांसा ।
(१) ज्ञानस्य बाह्यार्थापेक्षयैव वैशद्यावेशयं देवः प्रणति । स्वरूपापेक्षया सकलमपि ज्ञानं विशदमेव । लघीयस्त्रयीका ।