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मतभेद और आलोचना
Г २७९
धारणा है । यह मत भी ठीक नहीं है परन्तु अन्य सब मतों की अपेक्षा कुछ ठीक है।
इस मत से जो प्राचीन मत है वह स्मृति को या स्मृति के कारण को (१) धारणा कहता है । इस मत के अनुसार संस्कार मी धारणा कहलाता है, और तीसरा प्राचीनमत तीनों को धारणा कहता है । इस मत के अनुसार अवाय की दृढ़तम अवस्था भी धारणा है संस्कार भी धारणा है और स्मृति भी धारणा है । (२)
स्मृति को धारणा मानने से, धारणा सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष के भीतर शामिल नहीं हो सकती, क्योंकि स्मृति, परोक्ष रूप होने से सांव्यवहारिक प्रत्यक्षरूप नहीं है । इससे विद्यानन्दी के वक्तव्य से विरोध होता है ।
कोई किसी एक को या दो को या तीनों को धारणा माने परन्तु ये तीनों मत ठीक नहीं है । इनमें सब से अधिक आपत्तिजनक मत, संस्कार को धारणा मानना है । वास्तव में संस्कार को ज्ञान से भिन्न एक स्वतन्त्रगुण मानना चाहिये, जैसा कि वैशेषिक [३] दर्शन में माना जाता है ।
(३) कालान्तरे अत्रिस्मरणकारणं धारणा । सर्वार्थसिद्धि १-१५ | निर्मातार्थाऽविस्मृतिर्धारणा । स एवायमित्यविस्मरणं यतो भवति सा धारणा त० राजवार्तिक । १-१५-४ ।
(४) तयणंतरं तयत्थाविद्यवणं जो य वासणाजोगो । कालंतरे य जं पुमरशुसरणं धारणा सा उ । विशेषावश्यक । २९५ ।
(५) मावनाख्यस्तु संस्कारो जीववृत्तिरतीन्द्रियः । कारिकावली १६० ।