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श्रुवज्ञान के मेद:
८-३६२ भरत ने तुरंत
पुराण में नहीं
में रहे। पद्मपुराण के अनुसार राम अयोध्या में रहे, दीक्षा लेली । लवकुश मगैरह का जिक्र भी उत्तर है । लक्ष्मण की अचानक मृत्यु नहीं हुई, किन्तु रोगले मरे चन्दने तुरन्त संस्कार कर दिया, पद्मपुराण के अनुसार छः महीने तक पागल के समान नहीं घूमते रहे ।
1 राम
दो जैनाचार्य एक ही कथा को कितने विचित्र ढंग से चित्रित करते हैं इसका यह अच्छा से अच्छा नमूना है। इससे हमारे कथासाहित्य का रहस्योद्घाटन हो जाता है। जो लोग यह समझते हैं कि हमारे आचार्य महात्मा महावीर के कथन को ही ज्यों का त्यों लिखते हैं, वे नयी कल्पना नहीं करते, उनको उपर्युक्त कथा पर विचार करना चाहिये | और जब 'आचार्य नयी कल्पना करते हैं'. यह सिद्ध हो जाय तब आचार्यो की प्रत्येक बात को महात्मा महावीर की बाणी न समझना चाहिये ।
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उत्तर पुराण की कथा पर बौद्धरामायण का प्रभाव स्पष्ट ह मालूम होता है । हिन्दू और जैनग्रंथों में अयोध्या को जितना महत्व प्राप्त है उतना महत्व बौद्धसाहित्य में बनारस को प्राप्त है । इसलिये बौद्ध साहित्य में रामायण का स्थान भी बनारस है। उत्तरपुराणकार ने वैदिक रामायणकी अपेक्षा बौद्ध रामायण को अधिक अपनाया है । कथा-साहित्य के इस भेद से हम दो में से किसी भी आचार्य को दोष नहीं दे सकते । इसमें उन आचायों का दोष लोगों का दोष है जो प्रथमानुयोग को इतिहास आचार्यों ने धर्म-शिक्षा के लिये काव्य रचना की। उनकी रचना
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नहीं किन्तु उन समझते हैं ।
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