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पाँचवाँ अध्यायः
आकाशगता- इसमें आकाशगमन आदि के मंत्रतंत्र है । इससे मालूम होता है कि उस जमाने में इस विषयका जो आश्चर्यजनक भौतिक विज्ञान प्राप्त था उसका विस्तृत वर्णन इन चूलिकाओं में था । मालूम होता है कि इन भौतिक विषयों का विशेष वर्णन मूलग्रंथ में उचित न मालूम हुआ, इसलिये परिशिष्ट बनाकर इनका वर्णन किया गया ।
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उस जमाने में धर्मविद्याको बहुत महत्व प्राप्त था । समाज के लिये आवश्यक और समाज में प्रचलित प्रत्येक विद्याकी पूर्ति करने का भार भी धर्मगुरुओं पर था । परन्तु यह सब कार्य कोरे धर्म के गीतों से नहीं हो सकता था । इसलिये हम देखते हैं कि धर्मशास्त्रों में प्रायः सभी शास्त्रों का समावेश किया गया है। इस प्रकार धर्मशास्त्र अन्य अनेक शास्त्रों के अजायबघर बन गये हैं । उस ज़माने पर विचार करते हुए यह बात न तो अनुचित है, न आश्चर्यजनक है ।
हां, इतनी बात ध्यान में रखना चाहिये कि धर्मशास्त्रों में धार्मिक बातों का जितना महत्त्व है, उतना अन्य शास्त्रों की बातों का नहीं है, धर्माचार्य धार्मिक विषयका वर्णन अनुभव से करते थे, परन्तु दूसरे विषयों का वर्णन तो उस ज़माने के अन्य विद्वानों के वक्तव्य के आधार पर किया है । यह तो सम्भव नहीं है कि उस जमाने की सारी भौतिक विद्याओं का अनुभव स्वयं तीर्थकर करते हों । तीर्थंकर तो धर्मतीर्थके अनुभवी थे, धर्मतीर्थ के संस्थापक थे । अन्य विषय तो उनके लिये भी परोक्षज्ञान से सुनकर माम हुए थे। इसलिये धार्मिक मामलों में उनकी वाणी जितनी