Book Title: Jain Dharm Mimansa 02
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 403
________________ अवधिज्ञान [ ४०३ मिली हुई दो चीज़ों में से एक के अनुभव हो जाने से दूसरे के अनुभव होने में देर नहीं लगती। यही कारण है कि पूर्ण भौतिकज्ञानी शीघ्रही पूर्ण आत्मज्ञानी अर्थात् कवली हो जाता है । विश्वके रहस्य का वह प्रत्यक्षदर्शी हो जाता है । इस प्रकार जैन-शास्त्रों में जो अवधिज्ञान का निरूपण मिलता है उसकी सङ्गति बैठती है । पर उसकी सङ्गति बिठलाने के लिये एक जुदी इन्द्रिय की कल्पना जो मैंने की है उसे भी अभी कल्पना ही कहना चाहिये वह प्रामाणिक नहीं है। अगर और भी नि:ष्पक्षता से विचार करना हो तो यही कहना ठीक होगा कि अवधिज्ञान एक मानसिक ज्ञान है जैसा कि नन्दी-सूत्रका कथन है । साधारण लोगोंकी अपेक्षा जिन की विचारशक्ति कुछ तीव्र हो जाती है और जो भौतिक घटनाओं का कार्य कारणभाव जल्दी और अधिक सम्झने लगते हैं उन्हें अवधिज्ञानी कहते हैं। कभी कभी ऐसा होता है कि हम अपने में या आसपास बहुतसी बातों का कार्यकारणभाव जल्दी समझजाते हैं क्योंकि उनका परिचय होता है जब कि दूसरी जगह हमारी अक्ल काम नहीं करती क्योंकि वहाँ परिचय नहीं होता । यही कारण है कि अवधिज्ञान अनुगामी आदि कहा जाता है ।। अवधिज्ञान के द्वारा परलोक आदि की बातें बता देने की जो चर्चा आती है उसका मतलब यही है कि कर्मफल के कार्यकारणभाव का ऐसा अच्छा ज्ञान जिससे मनुष्य, कर्मफल के अनुसार

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