Book Title: Jain Dharm Mimansa 02
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 414
________________ (३) निरतिवाद :--पृष्ठ ६० मूल्य । ' बुद्धि और हृदय को एकांगी आदर्शवाले अतिवादों के दलदल में फंसाकर हमने अपने व्यावहारिक जीवन को मटियामेट कर दिया है । यह ग्रन्थ हमें आसमानी कल्पनाओं के स्वर्ग में विचरण करनेवाले एकान्त साम्यवाद और नारकीय यंत्रणाओं में कैद करके पाताल में ढकेलने वाले एकान्त पूँजीवाद से मुक्त करके हमारे रहने लायक इस मर्त्यलोक का एक मध्यम-मार्गीय व्यावहारिक सन्देश देता है । (४) शीलवती [ वैश्याओं की एक सुधार योजना] यह छोटीसी पुस्तक आपको बतायगी कि वेश्याओं के जीवन को भी किस प्रकार शीलवान और उन्नत बनाया जाय ? मूल्य ) (५) विवाह-पद्धतिः- पृष्ठ ३२ मूल्य ) यह पुस्तक आपको सिखायगी कि दाम्पत्य जीवन के खेल को किस ज़िम्मेदारी के साथ खेला जाय ? (६) सत्यसमाज [शंका-समाधान] पृ. ३२ मू. 61.. (७) धर्म-मीमांसा पृष्ठ १०० मूल्य ।) धर्म की मौलिक व्याख्या और उसका सर्वव्यापक विशुद्ध स्वरूप । सत्यसमाज की शंकासमाधान सहित रूप-रेखा । (८)जैन-धर्म-मीमांसा (प्रथम भाग ] पृष्ठ ३५० धर्म की निष्पक्ष व्याख्या, म. महावीर का संशोधित और बुद्धि-संगत जीवन-चरित्र । सम्यग्दर्शन की असाम्प्रदायिक, मौलिक, गहरी और विस्तृत व्याख्या । मूल्य १)। .

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