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४०४] पाँचवाँ अध्याय चरित्र-चित्रण करने की शीघ्रबुद्धि-प्रत्युत्पन्नमतित्व पासके ।
पहिले ज़माने में जैसा अवधिज्ञान हो सकता था वैसा आज भी हो सकता है बल्कि उससे अच्छा हो सकता है पर अब जमाना ऐसा आगया है कि उस ज्ञान की अलौकिकता डंके की चोट घोषित नहीं की जा सकती। उसका वैज्ञानिक विश्लेषण इतना अच्छा हो सकता है कि लोग उसे अवधिज्ञान न कह कर मतिज्ञान का ही एक विशेषरूप कहेंगे । यही अवधिज्ञान का रहस्य है।
मनःपर्यय ज्ञान। अवधिज्ञान के समान मनःपर्ययज्ञान भी है। अवधिज्ञानकी अपेक्षा अगर इसमें कुछ विशेषताएँ हैं, तो ये हैं:
१-यह सिर्फ मन की हालतों का ज्ञान है । अवधिज्ञान की तरह यह प्रत्येक भौतिकपदार्थ को नहीं जानता है ।
२-मनःपर्ययज्ञान मुनियों के ही होता है ।
३-अवधिज्ञान का क्षेत्र सर्वलोक है, किन्तु इसका क्षेत्र सिर्फ मनुष्य लोक है।
४-अवधिज्ञान के पहिले अवधिदर्शन होता है परन्तु मन:. पर्यय के पहिले मनःपर्यय-दर्शन नहीं होता।
आकृति, चेष्टा आदि से अनुमान लगाकर दूसरे के मानसिक भावों का पता लगा लेन: कठिन नहीं है। यह कार्य थोड़ी बहुत मात्रा में हरएक आदमी कर सकता है परन्तु इसे मनःपर्ययज्ञान