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अवधिज्ञान है-समझ लेने पर वह भी विश्वसनीय हो जाता है। परन्तु अवधि
और मनःपर्यय की समस्या और भी जटिल है । इनकी जटिलता बिलकुल दूसरे ढंग की है. । वे दोनों ही भौतिक ज्ञान हैं। जैनशास्त्रों के अनुसार अवधिज्ञानी मनुष्य हज़ारों लाखों कोसों के ही नहीं, सारे विश्व के पदार्थों को इसी तरह देख सकता है जैसे हम आँखों के सामने की वस्तु को देख सकते हैं बल्कि इसकी स्पष्टता इन्द्रिय-ज्ञान से भी अधिक बतलाई जाती है । साथ ही इसके द्वारा उन गुणों का भी ज्ञान होता है जिनका हमें पता नहीं है। हमारे पास पाँच इन्द्रियां हैं, इसलिये हम पुद्गलके पांच गुण या पांच तरह की अवस्थाएं जान सकते हैं । परन्तु अवधिज्ञान से अगणित भवों का ज्ञान होता है।
प्राचीन समय से ही भारत में ऐसे अलौकिक ज्ञानों का अस्तित्व स्वीकार किया जा रहा है । यह योगज-प्रत्यक्ष या योगियों का ज्ञान कहलाता है, जिससे योगी लोग एक जगह बैठे बैठे सब जगह की चीजें इच्छानुसार जान सकते हैं, दूसरे के मनकी बातों को भी जान लेते हैं। इनसे कोई बात छुपाना असंभव है। देवों के भी ऐसे अलौकिक ज्ञान माने जाते हैं ।
जैनधर्म अपने समय का वैज्ञानिक धर्म है इसलिये उस में इन सब बातों का एक नियम-बद्ध रूप मिलता है। तीनों लोकों में कौन कहाँ की कितनी बात जान सकता है, कौन किस किसके मानसिक भावोंको समझ सकता है, कितनी दूर का जाननेसे कितने भूत भविष्यका ज्ञान होता है, इनके असंख्य भेद किसप्रकार बनते हैं, किस गतिमें कितने भेद प्राप्त हो सकते हैं। किस ढंगसे प्राप्त हो