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. अवधिज्ञान
[ ३९७ अवधिज्ञान भी कोई ऐसी इन्द्रिय है जो इन पांचों इंद्रियोंसे भिन्न है, तथा अदृश्य है । अभी तक हम को पांच इद्रियों का ज्ञान है, इसलिये हम इंद्रियों के विषय भी पांच प्रकार के स्पर्श रस गन्ध वर्ण शब्द-मानते हैं । कल्पना करो कि मनुष्यों के चक्षु इन्द्रिय न होती और पशुओं के होती, तो यह निश्चित है कि हमारी भाषा में रूप' नाम का कोई शब्द ही न होता, न हम अन्य किसी प्रकार से रूपकी कल्पना कर सकते । जिस समय कोई पशु दूरकी वस्तु देखकर ज्ञान कर लेता तो हम यही सोचते कि यह पशु नाकसे संघकर दूर के पदार्थ को जान लेता है; उसके आँख नाम की एक स्वतंत्र इन्द्रिय है, यह बात हम कभी न सोचपाते। इसी तरह आज भी सम्भव है कि किसी किसी पशु के अन्य कोई इन्द्रिय हो, जिसे हम नहीं जान पाते । जब उनमें किसी असाधारण ज्ञान का सद्भाव मालूम होता है तब यही कल्पना कर लेते हैं कि वे पाँच इन्द्रियों में किसी इन्द्रिय से ही यह असाधारण ज्ञान कर लेते हैं। हम उनके छट्ठी इन्द्रिय नहीं मानते । उदाहरणार्थ कई जानवर ऐसे होते हैं जिनको भूकम्पका ज्ञान महीनों पहिले से हो जाता है । चूहे वगैरह भी कई दिन पहिले से भूकंप का ज्ञान करके जगह छोड़ देते हैं। माउंट पीरी का ज्वालामुखी जब फटा था तब आसपास रहनेवाले पशुओं को महीनों पहिले ज्वालामुखी के फटने का पता लग गया था और वह प्रदेश पशुओं से उजाड़ हो गया था। महीनों पहिले से उन्हें ज्वालामुखी फटने का ज्ञान हुआ, यह ज्ञान किस इन्द्रिय से दुआ यह जानना कठिन है । फटने के पहिले ज्वालामुखी