Book Title: Jain Dharm Mimansa 02
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 397
________________ अवधिज्ञान [ ३९५ 1 करने बालों के लिये महत्वपूर्ण हैं। यदि अवधिज्ञान से स्वर्ग नरक दिखलाई देते तो गौतम के मुख से ये उद्गार कभी न निकलते कि मैंने नरक और नारकी नहीं देखे । एक साधारण अवधिज्ञानी भी नरक देख सकता है | आनंद का कहना था कि मुझे नरक दिखलाई दे रहा है । यह बात महात्मा महावीर ने भी स्वीकार की थी । तब गौतम का ज्ञान तो इन सबसे बहुत अधिक था ! फिर भी नरक स्वर्ग के विषय में गौतम इस प्रकार उद्गार निकालते हैं ! इससे मालूम होता है कि उस समय अवधि. मन:पर्यय ज्ञान का विषय इतना विशाल नहीं माना जाता था । इस प्रकार अवधि और मन:पर्यय का इतना विशाल विषय न तो तर्कसम्मत है न इतिहास सम्मत है । फिर भी कुछ है तो अवश्य ! वह क्या है, इसी की खोज करना चाहिये । जैनशास्त्रों में अवधिज्ञान के विषय में जो जो बातें कही गई हैं, उनपर गम्भीर विचार करने से अवधिज्ञान के विषय में कुछ कुछ आभास मिलता है । यह ज्ञान अतीन्द्रिय माना जाता है । अर्थात् इसमें इन्द्रियों की आवश्यकता नहीं होती । दूसरे शब्दों में यह कहना चाहिये कि जहाँ इन्द्रियों की गति नहीं है, वहाँ इसकी गति है । यह इन्द्रियोंकी अपेक्षा कुछ दूरके विषयको जान सकता है, तथा जो गुण इन्द्रियों के विषय नहीं हैं उनको भी जान सकता है । जिस प्रकार आँख, कान, नाकका स्थान नियत है, वहीं से हम देखते सुनते हैं, उसी प्रकार अवधिज्ञानका भी शरीरमें स्थान नियत है । कोई कोई अवधि

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