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३७४ ] पाँचवाँ अध्याय सत्फल बताने के लिये रामायण की कथा लिखता है और उसमें यह भी लिख जाता है कि अयोध्या बारह योजन लम्बी थी मानलों किसी जबर्दस्त प्रमाणसे वह सिद्ध हो जाय कि अयोध्या उस समय बारह योजन लम्बी नहीं थी, तो क्या इससे न्यायपक्ष की असफलता नष्ट ही गई ? धर्मशास्त्र के वर्णन धर्मशास्त्र रूपमें सत्य हैं अगर अन्य रूपमें असत्य हैं तो इससे धर्मशास्त्र असत्य नहीं हो जाता ।
दो और दो चार होते है, इस विषय में कोई यह नहीं पूछता कि जैनधर्म के अनुसार दो और दो कितने होते हैं और बौद्धधर्म के अनुसार कितने होते हैं ! बात यह है कि गणित गणित है, इसलिये वह जैनगणित आदि भेदों म विभक्त नहीं होता। जैन, बौद्ध आदि धर्मशास्त्र के भेद हैं, और गणितशाल धर्मशास्त्र से स्वतन्त्र शास्त्र है । इसलिये धर्मशास्त्र के भेद गणितशास्त्र के साथ लगाना अनुचित है। जिस प्रकार गणितको हम जैन, बौद्ध आदि भेदोंवें विभक्त करना ठीक नहीं समझने, उसीप्रकार भूगोल, इतिहास आदिको भी इसप्रकार विभक न करना चाहिये। धर्मशास्त्राकी पूँछसे सभी शास्रों को लटका देनेसे बेचारे धर्मशास्त्रकी तथा अन्य शास्त्रोंकी बड़ी दुर्दशा होजाती है । इससे धर्मशास्त्र तभी शास्रोंके विकासको रोकने लगता है तथा दूसरे शास्त्र जब नई खोजोंके सामने नहीं टिकपाते तो धर्मशास्त्र को भी ले डूबते हैं । धर्मशास्त्रकी कैदसे सब शास्त्रोंको मुक्त करके तथा शाखोंके सिरसे सब शानोंका बोझ हटादेने से हम सब शाचोंसे पूरा लाभ उठा सकते हैं, तथा शास्त्रोका विकास कर सकते हैं । इस विवेचनसे यह बात अच्छी तरह मालूम होजाती है कि . गणितानुयोग और प्रथमानुयोगका क्या स्थान है ?
अकोका बोश का विकास का है कि