Book Title: Jain Dharm Mimansa 02
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 379
________________ ज्ञानके [ २३०३ धर्मशास्त्र में जो भौगोलिक वर्णन है, उसका रेखाचित्र तो तर्कसिद्ध है, किन्तु उसमें जो रंग भरा गया है, वह स्थित है। तीसरे अध्याय में मैं आत्मा के अस्तित्व पर लिख चुका हूं। आत्मा कोई स्वतन्त्र द्रव्य तत्त्व सिद्ध हो जाता है, तब उसका परलोक में जाना - इस शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश करना अनिवार्य है । वह शरीर या वह जगत वर्तमान शरीर से या वर्तमान जगत् से अच्छा है तो स्वर्ग और बुरा है तो नरक है 1 बस, भोगोलिक वर्णन का यह रेखाचित्र तर्कसिद्ध है। बाकी कल्पित है। जब इस मौलिक अंशको धक्का नहीं लगता और बर्तमान जैनभुगोल मिथ्या सिद्ध हो जाने पर भी अच्छे और बुरे परलोक का अभाव सिद्ध नहीं होता तब जैनभूगोल से चिपके रहने की ही क्या आवश्यकता है ? उसके लिये किसी को विज्ञान की नयी नयी खोजों का बहिष्कार क्यों करना चाहिये ! जिस प्रकार सत्य, असल्य अर्धसत्य कथाओं का उपयोग धार्मिक शिक्षा के काम में किया जाता है उसी प्रकार सत्य, असत्य अर्धसत्य भूगोल का उपयोग भी धर्मशास्त्र करता है। धर्मशास्त्र सभी शास्त्रों का उपयोग करता है । अगर कोई शमन परिवर्तनीय है तो उसका परिवर्तन हो जाने पर उसके परिवर्तित रूप का धर्मशास्त्र उपयोग करने लोगा । यह परिवर्तन उस शास्त्र का ही परिवर्तन है न कि धर्मशास्त्र का । " लोगों की बड़ी भारी भूल यह होती है कि धर्मशास्त्र जिल जिन शास्त्रों का उपयोग करता है उन सब को भी. के. धर्मशास्त्र समझने लगते हैं। एक अन्धकार स्रवत्ति का और न्यायमा का

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