________________
३५६ ]
पाँचवाँ अध्याय
एक युग वह था जब लोग अपने पूर्वजों को देव-दैत्यों के समान महान समझते थे । उनमें अनेक अद्भुत शक्तियाँ मानते थे और व्यक्तिविशेष का ऐसा अद्भुत चित्रण करते थे जिसे कि विचारशक्ति सहन नहीं कर सकती । उस युग का मनुष्य हाथियों को खा जाता था, नाक की श्वास से पहाड़ों को उड़ा देता था, उसके दस दस मुख और सैकड़ों तक हाथ होते थे । यह बिलकुल अवैज्ञानिक युग था ।
दूसरे युग में हम कुछ विज्ञानके दर्शन पाते हैं । इस युग में अनेक विचित्र घटनाएं असम्भव कहकर दूर कर दी जाती हैं । कुछ सुसंस्कृत कर दी जाती हैं, कुछ एक नियम के आधीन कर दी जाती हैं। जैसे कुम्भकर्ण हाथियों को खा जाता था, छ: महीने तक सोता था, ये बातें असम्भव कहकर उड़ादी गई हैं । हनुमान वगैरह बंदर थे, यह सब ठीक नहीं; वे वानरवंशी राजा थे, उन की ध्वजामें वानर का चिह्न था, राक्षस भी मनुष्यों के एक वंश का नाम था, ऋक्ष आदि भी ध्वजाचिह्नों के कारण कहलाते थे । रावण के दस सिर नहीं थे, किन्तु वह एक हार पहिनता था जिस में उसके सिर का प्रतिबिम्ब पड़ता था - इससे वह दशमुख कहलाने लगा | यह सब घटनाओं का सुसंस्कार था । राक्षस लोग विशालकाय थे, यह ठीक है परन्तु अकेले राक्षस ही विशालकाय न थे किन्तु उस युग के सब मनुष्य विशालकाय थे, राम और सीता भी विशालकाय थे । अन्य था छोटीसी सीता को रावण क्यों चुराता ? सीता का शरीर इतना बड़ा अवश्य होना चाहिये जिससे रावण पत्नी बनाने के लिये चुरासके । इस प्रकार कुछ घटनाएं नियमा-