Book Title: Jain Dharm Mimansa 02
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 364
________________ श्रुतज्ञान के भेद [ ३५५ ठीक ऐसा ही वर्णन रविषेण कृत पद्मपुराण में (१) है जिसके श्लोक पउमचरिय की छाया कहे जा सकत हैं । दोनों ग्रंथों के इस कथन से यह बात साफ मालूम होती है कि जब यह कथा जैनशास्त्रों में आई होगी उसके पहिले अन्य लोगों में वह रामकथा प्रचलित थी जो कि आजकल रामायण में पाई जाती है। परन्तु जैनाचार्यों को वह कथा युक्तियुक्त नहीं मालूम हुई, इसलिये उनने यह कथा बदलकर जैन साँचमें ढली हुई रामकथा बनाई। ___ज्यों ज्यों मनुष्य का विकास होता जाता है त्यों त्यों कथासाहित्य का भी होता जाता है। आज का युग भूत, पिशाच आदि की अलौलिक घटनाओं पर विश्वास नहीं करता, इसलिये आजकल ऐसी कहानियाँ भी नहीं लिखी जाती । कथाएं, लोक रुचि और लोक विश्वासके अनुसार लिखी जाती हैं । वैज्ञानिक युगके समान कथाएं भी वैज्ञानिक होती जाती हैं । प्रकृति के रहस्य का ज्ञान, विज्ञान है। साधारण मनुष्य जिन घटनाओं को अद्भुत समझता है, वैज्ञानिक उसके कार्यकारण सम्बन्ध का पता लगाकर उसे एक नियम के अन्तर्गत सिद्ध करता है। यही नियमज्ञान, विज्ञान है। इसी विज्ञान के सहारे कथाओं का भी विकास हुआ है। (१) विस्तारभय से पद्मपुराण के श्लोक उदधृत नहीं किये जाते । विशेष जिज्ञासुओं को द्विाय पर्व के २३० वें श्लोक से २४८ तक, और तृतीय पर्व के १७३ श्लोक से २७ वें तक देखना चाहिये।

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