________________
३५४ ]
पाँचवाँ अध्याय
दूसरे दिन राजाने गौतम गणधर से पूछा (१) " हे महायश ! कुशास्त्रवादियोंने बहुत उल्टी बातें फैला रक्खीं हैं; मैं उनको साफ़ सुनना चाहता हूं । हे महायज्ञ ! यदि रावण था और इन्द्रके समान शक्तिशाली था तो वानर पशुओंने उसे युद्ध में कैसे जीत लिया ? रामने सोने का मृग जंगल में मार डाला, सुग्रीव की सुतारा के लिये छिप कर बालो को मारा ! स्वर्ग में जाकर युद्ध में देवेन्द्रको जीतकर उसे बेड़ियों से जकड़ कर कैदखाने में रक्खा ! सब पुरुषार्थ और शास्त्रों में कुशल कुम्भकर्ण छ : महीने सोता था ! बन्दरोंने समुद्र में पुल कैसे बाँधा ? भग्वन् ! कृपाकर असली बात बताइये जो युक्तियुक्त हो । मनरूपी प्रकाश से मेरे संदेहरूपी अन्धकार को नष्ट कीजिये !"
तब गणधर ने कहा 'रावण राक्षस (२) मांस खाता था । ये सब बातें मिथ्या हैं, जो कहते हैं ।
नहीं था, न वह कि मूर्ख कुकवि
( १ ) पउमचरियं महायस अहयं इच्छामि परिपुडं सोउं । उप्पाइया प्रसिद्धी कुसत्यवादीहि विवरीया । ३-८ । जह रावणो महायस निसाय र बरो व्व अइचरिओ | कह सो परिहूआ न्विय वाणर तिरियहि रणमझे | ९ | रामेण कणयदे हो सरेण भिन्नो मओ अरण्णम्मि । सुग्गीवस्तारत्थं छिद्देण विवाइओ बाली । १० । गन्तूण देवनिलयं सुरबह जिणिऊण समरमम्मि दढ़कठिण. निलयबद्धो पवेसिओ चार गेहम्मि । ११ । सत्वत्थ सत्यकुसलो कम्मासं सुद्दय कुम्भका कह बाणरहि बद्धो सेउच्चिय सायरवरम्मि । १२ । भयवं कुणह पसायं कहेह तच्चत्थ हेउसंजुचं । संबेहअधवार नाणुज्जोएण नासेह | १३ |
(२) नय रक्खसो त्ति भण्णइ दसाणणो णेय आमिसाहारो । अयं ति सव्वमयं भणति जं कुकणो मूढा । ३-१५ ।