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३७० ] पाँचवाँ अध्याय मेघ बनते हैं इसलिये यह कहलाया कि अग्नि मेघों को पैदा करती
। परन्तु मेघमाला स्वयं अग्नि को पैदा करती है, उससे विद्युत रूप अनि पैदा होती है । इस प्रकार अग्नि जिसको पैदा करती हैं, उससे पैदा भी होती है।
हाँ किसी को आलंकारिक ठहराते समय बहत सावधानी की ज़रूरत है अन्यथा अलंकार का क्षेत्र इतना विशाल है कि उसमें वास्तविक इतिहास भी विलीन हो सकता है । जहाँ वास्तविक अर्थ न घट सकता हो वहाँ आलंकारिक अर्थ करमा चाहिये ।
जिस प्रकार हम कृत्रिम और अकृत्रिम वस्तुओं को देखते ही पहिचान लेते हैं, उसी प्रकार कथाओं की भी पहिचान की जाती है । चरित्र लेखक की भावनाएँ चरित्रके ऊपर कुछ ऐसी छाप मार जाती हैं तथा घटनाक्रम कुछ ऐसा चलता है, जिससे उसकी कृत्रिमता मालूम होने लगती है। उदाहरणार्थ कोई राजा रतिकर्म में अधिक लगा रहता है, इसलिये कथाकार उसका नाम 'सुरत' रख देता है । इस प्रकार कथाकार अपने पात्रों के नाम उनके चरित्र के अनुसार रखता है, इससे उस कथा-वस्तुकी कल्पितता सिद्ध होती है । यद्यपि यह नियम नहीं है कि प्रत्येक कल्पित कथा के नाम इसप्रकार गुणानुसार ही होते हैं, परन्तु जहाँ ऐसे नाम होते हैं, वहाँ पर कथानक प्रायः कल्पित होते हैं। अपवाद नगण्य हैं।
इस विषय को और भी बढ़ाकर लिखा जा सकता है, परंतु स्थानाभाव से बहुत संक्षेप में लिखा गया है। यद्यपि कथासाहित्य