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रुतज्ञान के भेदः दृष्टि से जिन जिन वातुओं में समानता है उनका एक साथ वर्णन किया जाता है। जैसे धर्म, अधर्म और जीव (एक जीब) के प्रदेश एक बराबर हैं; केवलज्ञान, क्षायिक सम्यक्त्व, ययाख्यात- चारित्रका . भाव (शक्ति) एक बराबर है, आदि ।
५-व्याख्याप्रज्ञप्ति-इस अंगमें म. महावीर और गौतमके बीचमें होनेवाने प्रश्नोत्तों का वर्णन है । दिगम्बर सम्प्रदायके अनुसार इस अंगमें सार(१) हजार प्रश्नका उत्तर है आर श्वेताम्बर सम्प्रदायके अनुसार हरीस (२) हज़ार प्रश्नों के उत्तर हैं । इसका प्रकृत नाम । • विवाह-पण्णत्ति ' है। अभयदेवने इसके अनेक संस्कृत रूप बताये', हैं । उसमें व्याख्याप्रज्ञप्ति ता प्रचलित ही है। दूसरा विवाह-प्रज्ञप्ति बतलाया है, जिसका अर्थ किया है--विविविध, वाह-प्रवाह नयप्रवाह । इसका अर्थ हुआ कि स्यद्ध द शैलीसे जिस में अनक प्रश्नोंका समाधान किया गया हो वह व्याख्याप्रज्ञप्ति है। तीसरा अर्थ विबाधप्रज्ञप्ति है । अर्थात् बाधारहित विवेचन्याली । वर्तमान में यह बहुत महत्वपूर्ण अंग ममझा जाता है इसलिये इसका दृमरा नाम भावती (३) भी प्रचलित है । दिगम्बर सम्प्रदाय विवाय पण्गचि (४) विक्खाणारी नाम भी प्रचलित हैं।
(:) व्याख्याप्रज्ञप्ती षष्टिच्याकरणसहरूमि । किमस्ति जीवः ? नास्ति ? इत्येवमादीनि निरूप्यन्ते । त. स. १.२..२ (२) षट् त्रिंश-प्रश्नस हन५माणं मूत्रपदस्य ।
व्याख्याप्राप्ति अभय देव वृति । (३) पश्च भावती यपि पूज्य नामिधीयते । -अभयदेव. वृधि । (४) किं अस्थिणा:य जीवो गणहरसहीसहस्सकयपहा।