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३१६ ] पाँचवाँ अध्याय
६-न्यायधर्म कथा-इस अंगके नामके विषय में बहुत मतभेद है । दिगम्बर सम्प्रदायमें दो नामप्रचलित हैं । (१)ज्ञातृधर्म कथा, नाथधर्म कथा । परन्तु एक तीसरा नाम भी मालूम होता है । प्राकृत श्रुतभाक्तिमें इसका नाम 'णाणाधम्मकहा' लिखा है। तदनुसार इसका नाम 'नानाधर्मकथा 'कहलाया। इससे भिन्न एक नाम उमास्वातिकृत तत्वार्थभाष्यमें 'ज्ञातधर्मकथा' कहा है । इससे कौनसा नाम ठीक है इसका पता लगाना मुश्किल हो जाता है । मूलसूत्र प्राकृतभाषामें थे इसलिये इस अंगके प्राकृत नामों पर ही विचार करना चाहिये।
प्राकृतमें इसके तीन नाम मिलते हैं-णाणाधम्मकहा, णाहधम्मकहा और णायधम्मकहा । पहिला रूप बहुत कम प्रचलित है । मुझे तो सिर्फ इरुतभक्तिमें ही यह नाम मिला । दूसरा नाम गोम्मटसारमें है । इसका अर्थ होगा [२) तीर्थकरोंकी कथाएँ । नाथ अर्थात् स्वामी, तीर्थङ्कर । परन्तु वर्तमान में यह अंग जिस रूपमें उपलब्ध है उस परसे यह अनुमान नहीं किया जासकता कि इसमें सिर्फ तीर्थकरोंका जीवनचरित्र या दिनचर्या आदि होगी। पिछला
अड दुग दोय तिसुण्णं पमसंख विवाय पण्णत्ती-इसलिये यहाँ विवादप्राप्ति नाम मानना चाहिये । श्रुतस्कंध १४ ।। (१) तत्तो विक्खापण्णाए णाहस्स धम्मकहा ।
-गोम्मटसार जीवकांड ३५६ । (२) नाथः त्रिलोकेश्वराणां खामी ताकर परमभधारकः तस्य धर्मकथा ।
--मोम्मटसार जीवकाण्ड ३५६ ।