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श्रुतज्ञान के मेद
[३२७ के चरित्र हैं। राजवार्तिक में इस अंगकी भी दो व्याल्याएं की गई हैं । पहिली के अनुसार दस दस का नियम है, जबकि दूसरी के अनुसार नहीं है । दूसरी बात यह है कि इस अंगके चरित्रों के बहुत से नाम दोनों सम्प्रदायों में एक से मिल जाते हैं जैसे ऋषिदास, धन्य, सुनक्षत्र, अभयकुमार, वारिषेण आदि । वाकी शंकासमाधान आठवें अंगके समान ही समझ लेना चाहिये। .. .
१०-प्रश्नध्याकरण- इसकी सीधी व्याख्या यह है कि जिसमें प्रश्नोंका उत्तर हो बह प्रश्नध्याकरण है । परन्तु किस विषय के प्रश्नोंका उत्तर है, यह कहना कठिन है। नंदीसूत्र में (१) लिखा है- “ प्रश्न-व्याकरणमें एकसौ आठ प्रश्न (पूछनेसे जो विधा या मंत्र उत्तर दें) एकसौ आठ अप्रश्न ( जो बिना पूछे उत्तर दें और एक सौ आठ प्रश्नाप्रश्नका वर्णन है अर्थात उसमें अंगुष्ठ प्रस, बाहु प्रश्न, आदर्शप्रश्न (२) तथा और भी विचित्र विद्या अतिशय देवोंके साथ वार्तालाप आदिका वर्णन है ।
परन्तु वर्तमानमें जो प्रश्नव्याकरण सूत्र उपलब्ध है उसमें इन
(१) पाहावागरणेघुणं अछुत्तरं पसिणसमें अटुत्तरं अपसिणसयं अछुवरं * पसिणापसिषसपं । तं जहा अंगुडपांसगाई बाह पसिणाई अहागपसिणाई। अन्ने ति विज्जाइसया नागमुवण्णेहि सद्धि दिव्वा संवाया आधविज्जति ।
-नंदीसूत्र ५४ (२) मूलरूप 'अहागपसिणं' है। अदाग देशी शब्द है जिसका अर्थ आदर्श अर्थात् काम होता है। पुराने समय में रोगी को दर्पण में, प्रतिबिंबित करके उसकी मानसिक चिकित्सा की जाती थी। इसे आदर्श विद्या कहते थे।