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श्रुतज्ञान के भेद [६३३ और गोशाल ने जो महावीर के ऊपर तेजोलेश्या का प्रयोग किया था उसका पूरा रहस्य यद्यपि अज्ञात है परन्तु इससे जैन और आजीवक सम्प्रदाय में चमत्कारों की प्रतिद्वन्दिता का पता लगता है । बोद्ध-साहित्य से भी इस बात का पता लगता है । म. बुद्ध के शिष्य बहुत से चमत्कार बतलाया करते थे । पीछे म. बुद्ध ने अपने शिष्यों को चमत्कार दिखलाने की मनाई की थी। मनाई का कारण चाहे म. बुद्ध की उदारता हो, या इस विषय में उनके शिष्यों की असफलता हो, या जनता में फैलानेवाली अशांति का भय हो, निश्चय से कुछ नहीं कहा जा सकता । फिर भी स्वयं महात्मा बुद्ध चमकार दिखलाते थे ! शिष्यों को मना करने के बाद भी उनने चमत्कार दिखलाये हैं । सभी दर्शनों के प्रधान २ व्यक्ति चमत्कारों की प्रतियोगिता में शामिल होते थे और दर्शकों में राजा लोग भी होते थे, यह बात भी बौद्ध-साहित्य(१) से मालूम होती है।
खेर, यहाँ मुझे इस विषय का विस्तृत इतिहास नहीं लिखना है; सिर्फ इतनी बात कहना है कि वाद-विवाद के विषयों में चमस्कारों का महत्वपूर्ण स्थान था, और यह बहुत पीछे तक रहा । इतना ही नहीं किंतु विद्यापीठों में यह शिक्षण का विषय भी बना रहा है। तक्षशिला के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में इस विषय का भी प्रोफेसर नियत किया गया था। इससे जैनशास्त्रों में भी इस विषय को स्थान मिला और प्रश्नव्याकरण में ये सब चर्चाएँ आई । इससे मालूम होता है कि प्रश्नव्याकरण में म. महावीर के समय में होने
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(१) धम्मपदट्ठकथा ।