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रुतज्ञानके भेद
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उपर्युक्त समस्याओं की जब हम पूर्ति करने जाते हैं, तब हमें कथासाहित्य के विषय में एक नया प्रकाश मिलता है । मूल प्रथमानुयोग में जो तीर्थंकर चरित्र है वह
महात्मा महावीर का
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जीवन चरित्र है, सत्य है, और मौलिक है । इसीलिये उसे मूलप्रथमानुयोग कहा है । म महावीर के जीवन के साथ उनके शिष्यों का, और भक्त राजाओं का वर्णन भी आजाता है। यह वर्णन ही अन्य गंडिकाओं के लिये मौलिक अवलम्बन बनता है । महात्मा महावीर का जीवन चरित्र तो मूलप्रथमानुयोग कहलाया किन्तु उस जीवन के आधार पर जब अन्य तीर्थकरों की कथाएं बनाई गई तब वे तीर्थकर - गण्डिका कहलाई । इसी प्रकार उनके गणधरों के चरित्र के आधार पर जो प्राचीन गणधरों की कल्पना की गई वह गणधर - गंडिका कहलाई । संक्षेप में कहें तो मूलप्रथमानुयोग ऐतिहासिक दृष्टि से बनाया गया था, और गंडिकानुयोग उसका कल्पित, पलवित और गुणित रूप है । यही कारण है कि एक तीर्थंकर के जीवन चरित्र में चौबीस का गुणा करने से चौबीस का जीवन चरित्र बन जाता है । यही बात अन्य चरित्रों के बारे में भी कही जा सकती है । यह बात फिर दुहराई जाती है कि मूलप्रथमानुयोग मौलिक और गंडिकानुयोग कल्पित है ।
'भद्रबाहु गण्डिका' इस नाम से पता चलता है कि जब तबतक उसमें कुछ न कुछ भद्रबाहु थे इसलिये भद्रबाहु अंग- साहित्य में शामिल
तक दृष्टिवाद व्युच्छिन्न नहीं हुआ मिलता ही रहा । अंतिम स्रुतकेबली तकसे सम्बन्ध रखनेवाले परिवर्तन आदि,