________________
३४६ ]
पाँचवाँ अध्याय
योग्यता नहीं है । योग्यता होने पर भी दुरुपयोग होने के भयते उन्हें पिछले पूर्व पढ़ाना बन्द कर दिया गया था ।
अनुयोग
इसमें जैनधर्म का कथा-साहित्य है । श्वताम्बर ग्रन्थों में इसको अनुयोग शब्द से कहा है, जब कि दिगम्बर सम्प्रदाय के ग्रंथ इसे प्रथमानुयोग कहते हैं । अर्थ में कुछ अन्तर नहीं है । श्वेताम्बर ग्रन्थों के अनुसार इसका नम्बर दृष्टिवादके भेदों में चौथा है; जब किं दिगम्बर ग्रन्थों में तीसरा । ये मतभेद कुछ महत्त्वपूर्ण नहीं हैं, न इनके निर्णय करने के साधन ही उपलब्ध हैं । पठनक्रमके अनुसार परिकर्म के बाद सूत्र पढ़ाना उचित है । बाद में पूर्व या प्रथमानुयोग कोई भी पढ़ाया जा सकता है । प्रथमानुयोग की आवश्यकता धर्म के स्वरूप को स्पष्ट और व्यावहारिक रूप में समझने के लिये है । इसलिये कोई सूत्र के बाद ही प्रथमानुयोग पढ़े तो कोई हानि नहीं है, अथवा कोई सूत्रके बाद पूर्व पढ़े और पूर्व के वाद प्रथमानुयोग पढ़े तो भी कोई हानि नहीं है । इसीलिये कहीं तीसरा नम्बर और कहीं चौथा नम्बर दिया गया है ।
अनुयोग का अर्थ है अनुकूल सम्बन्ध । हरएक सम्प्रदाय का कथासाहित्यं अपने सिद्धान्त के पोषण और प्रचार के लिये.... बनाया जाता है | कथा चाहे सत्य हो या कल्पित, इसी उद्देश्य को लेकर किया जाता है। जैनाचार्य स्पष्ट शब्दों में स्वीकार करते हैं कि कथाएँ घटित
उसका चित्रण
इस बात को भी हैं, और