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३२८] पाँचवाँ अध्याय . बातोंका वर्णन नहीं है इसलिये इसके मंस्कृत टीकाकार अभयदेवका [१] कहना है कि आजकल इसमें सिर्फ आश्रवपश्चक और संवर पञ्चक का वर्णन है, पूर्वाचायों ने आजकल के पुरुषों की कमजोरी देखकर अतिशयों को दूरकर दिया है। - राजवार्तिककार अकलंकदेव [२] कहते हैं कि आक्षेप विक्षेपस हेतुनयाश्रित प्रश्नोंका उत्तर (खुलासा ) प्रश्नव्याकरण है । इसमें लौकिक और बैदिक अर्थों का निर्णय किया जाता है।
उमास्वातिभाष्यके टीकाकार श्रीसिद्धसेन [५] गणी कहते हैं कि पूछे हुए जीवादिव का भगवानने जो उत्तर दिया यह प्रश्न व्याकरण है। - धवलकार इसमें चार प्रकारको कथाओं (चर्चा) का उल्लेख बताते हैं, और गन्धहस्ति तत्वार्थमाष्य [४] का एक श्लोक उद्धृत करते हुए चर्चाओंके नाम आक्षेपणी विक्षेपणी संवेगिनी निमिनी कहते हैं।
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(१) इदंतु व्युत्पत्यर्थोऽस्य पूर्वकालेऽभूत् इदानीन्तु आपत्रपंचक संवर पंचक व्याकतिरेवेहोपलभ्यते, अतिशयानाम्पूर्वाचायरेदयुगीनानामपुष्टालम्बन प्रतिविपुरुषापेक्षयोत्तारितत्वादिति ।
(२) आक्षेपविक्षेपैहेंतुनयाश्रितानाम् प्रश्नानाम् व्याकरणं प्रश्नव्याकरण तस्मिन्लौककवौदिकानामर्थानां निर्णयः रा• वा० १.१०.१५
(३) प्रश्नितस्य जीवादेर्यत्र प्रतिवचनम् भगवता दत्तं तत्प्रश्नव्याकरणं १.२०' :
(४) उत्तश्च भाष्ये आक्षेपणी तत्वविचारभूताम् । विशेषणी तत्त्वादिगंत. शुद्धि । संवोगणी धर्मफलप्रपञ्च निर्वेगिनी चाह कथाविरागों। .