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श्रुतज्ञान के भेद [ ३२५ ठीक मालूम हो सकती है । फिर भी यह शंका तो रह ही जाती है कि चुनाव की बात दिगम्बर लेखकों ने स्पष्ट शब्दों में लिखी क्यों नहीं?
दशा का दश अर्थ करना यहां भी उचित नहीं माल्म होता । इसका कारण 'उपासकदशा' की व्याख्यामें बतलाया गया है। एक दूसरी बात यह है कि राजवार्तिककार इस अंग के विषय में अनेकबार 'अस्यां,' 'तस्याम्' आदि सर्वनामों के स्त्रीलिंग रूपोंका प्रयोग [१] करते हैं । इससे मालूम होता है कि इस अंग का नाम स्त्रीलिंग में होना चाहिये । ऐसी हालत में 'अंतकृद्दश' इस नामके बदले 'अंतकृद्दशा' यह नाम ही उचित है।
दस दस मुनियों के वर्णन के नियम में राजवार्तिककार को भी संदेह मालूम होता है। इसीलिये 'अंतकृद्दशा' की उपर्युक्त न्याख्या के बाद वे दूसरी व्याख्या देते हैं कि जिसमें अहंत आचार्य की विधि और मोक्ष जानेवालों का वर्णन (२) हो । यह व्याख्या ठीक मालूम होती है और श्वेताम्बर व्याख्या से भी मिल जाती है । श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुसार इसमें मोक्षगाभी जीवों के चरित्र है । उनके जन्मसे लेकर मरण (संलेखना ) तक की दशाओं का वर्णन हैं । गजसुकुमाल आदि कुछ मोक्षगामी ऐसे हैं जिनने उपसर्ग सहकर तुरंत मोक्ष प्राप्त किया और बाकी ऐसे हैं जिनको विशेष उपसर्ग सहन नहीं करना पड़ा । उपलब्ध अंगमें तीर्थकर आदि का वर्णन नहीं है परन्तु नंदीसूत्र टीकाकार के ... (१) अस्या वर्ण्यते इति अनतकशा | तस्यामहदाचार्यविधि ......... | ... . (२) अपना अन्तकता दश अन्तदश तस्यामर्हदाचार्यविधिः सिद्धमतांच ।