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रुतज्ञान के भेद
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रूप मानले परन्तु जब नियमानुसार ठीक अर्थ निकलता है तब इतनी खींचतान की या अपवादोंकी आवश्यकता नहीं मालूम होती । वर्तमान में जो यह अंग उपलब्ध है उसके दस अध्ययन हैं जिनमें दस श्रावकों की दशाओं का वर्णन है । परन्तु यह आश्चर्य की बात है कि वर्तमान में श्राविकाओं के अध्ययन नहीं पाये जाते । म. महावीरने श्रावकसंघ की तरह श्राविका संघ की भी स्थापना की थी इसलिये यह सम्भव नहीं कि इस अंग में श्राविकाओं का वर्णन न आया हो । बल्कि श्राविकाओं की संख्या श्रावकोंसे कई गुणी थी इसलिये उनका वर्णन और भी आवश्यक मालूम होता है । अगर यह कहा जाय कि उस समय में श्राविका संघ में कोई मुख्य श्राविकाएँ नहीं थीं तो यह भी ठीक नहीं, क्योंकि श्रावक संघ के मुखिया जिस प्रकार शंख और शतक थे, उसी प्रकार श्राविका संघ की मुख्याएँ भी रेवती और सुलसा थीं । कम से कम इन का वर्णन तो अवश्य ही आना चाहिये
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यह बात नहीं है कि अंग साहित्य में स्त्री- चरित्रों का वर्णन न हो । आठवें अगमें बीस अध्ययन ऐसे हैं जिन में पद्मावती, गौरी, गांधारी ( पांचवां वर्ग ) कालीकाली ( आठवां वर्ग ) आदि महिलाओं का वर्णन है । एक एक महिला के नामपर एक एक अध्ययन बना हुआ है, तब ऐसा कैसे हो सकता है कि 'उपासकदशा' में उपासिकाओं की दशाएं न बताई गई हों !
हां, कहा जा सकता है कि 'पिछले युग में श्राविकाओं का स्थान बहुत नीचा होगया था । वे आर्यिका बनकर तो समाज की