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पाँचवाँ अध्याय
किसी धर्म को ग्रहण न कर सकेगा । ऐसी हालत में जैनधर्म के प्रचार का प्रयत्न भी निरर्थक ही कहना पड़ेगा। दूसरी बात यह है कि आज कल भी आचार्यों से अधिक बुद्धिमान मनुष्य हो सकते हैं जो उनकी परीक्षा कर सकें। आचार्य हमारे पूर्वज होने से सम्मानास्पद हैं, परन्तु इसीलिये हम उनकी अपेक्षा मूर्ख हैं, यह नहीं कहा जा सकता । तीसरी बात यह है कि परीक्षा करने के लिये हमें उनसे बड़ा ज्ञानी होना आवश्यक नहीं है । हम गायन न जानते हुए भी अच्छे बुरे गायन की परीक्षा कर सकते हैं, रसोई बनाना न जानने पर भी उसकी परीक्षा कर सकते हैं, चिकित्सा न कर सकने पर भी चिकित्सा ठीक हुई या नहीं हुई इसकी जांच कर सकते हैं, व्याख्यान न दे सकने पर भी व्याख्यान की परीक्षा कर सकते हैं, लेख न लिख सकने पर भी लेखकी परीक्षा कर सकते हैं । इस प्रकार सैंकड़ों उदाहरण दिये जा सकते हैं ।
इस विवेचन से यह बात समझ में आ जाती है कि शास्त्र की परीक्षा सरल है और उसकी परीक्षा के बिना शास्त्र - अशास्त्र का निर्णय सिर्फ आप्तोपज्ञता से नहीं किया जा सकता । इसीलिये आचार्य समन्तभद्रने शास्त्र का निर्णय करने के लिये और बहुत से विशेषण डाले हैं ।
दूसरा विशेषण "अनुसंध्ये" अर्थात् जिसका कोई उल्लं घन न कर सके, अथवा जिसका उल्लंघन करना उचित न होहै । जब हम कहते हैं कि अग्नि को कोई छू नहीं सकता सब उसका यह अर्थ नहीं है कि उसका छूना असम्भव है । उसका
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