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शरुतज्ञ न के भेद
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महावीर क्या क्या विशेष बातें कहेंगे, यह पहिले से कौन जानता था ? महावीर - निर्वाण के बाद जब संघनायक का पद सुधर्मा स्वामी को मिला तब उनने पूर्ण श्रुत का संग्रह अपनी भाषा में किया । इसको भी अपनी भाषा देनेवाले जन्बू स्वामी हैं। वर्तमान के सूत्र प्रायः सुधर्म और जम्बूकुमार के वार्तालाप के रूप में उपलब्ध हैं । इससे मालूम होता है कि इन शास्त्रों को एक दिन जम्बूस्वामी ने अपने और सुधर्मा स्वामी के प्रश्नोत्तर के रूप में बनाया था । परन्तु यह परिवर्तन यहीं समाप्त नहीं होता है किन्तु जम्बूस्वामी के आगे की पीढ़ी उसे अपने शब्दों में ले लेती है । उस समय सूत्रों में रहा तो सुधर्मा जम्बू का ही प्रश्नोत्तर है परन्तु उसमें सुधर्मा और जम्बू को जो नाम लेकर आर्य विशेषण [१] लगाया गया है, तथा घोर तपस्त्री आदि कहकर जो की गई है उससे साफ़ मालूम होता है कि ये के वचन हैं । सुधर्मा और जम्बू न तो अपनी प्रशंसा अपने मुंह से कर सकते हैं और न अपने लिये अन्य पुरुष का उपयोग कर सकते हैं । इन दोनों से भिन्न कोई तीसरा व्यक्ति ही इन शब्दोंका उपयोग कर सकता है । अन्तिम श्रुत केबली भद्रबाहु थे । इन्होंने
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उनकी खूब प्रशंमा
किसी तीसरे व्यक्ति
[२] अज्जसुहम्मस्स अष्मगारस्स जेट्ठे अंतेवासी अज्जजम्बू नाम अणगारे कासवगोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरससंठाणसंठिए वज्ररिसनारायसंचयणे कणग पुलगनिघसम्म गोरे उग्गतवे तत्ततवे महातवे उराले घोरे घोरगुणे घोरतवरसी घारम्भचेरवासी उच्छूटसरीरे संखितघिउलतउलेसे अज्जसुहम्मस्स थेरस्स अदूरसामन्ते उद्धजाणू अहोसिरे झाणकोठोवगगए संजमेणं तवसा अप्पायं भावेभाषे बिरह || वायधम्म हा ॥