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मतभेद और आलोचना
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एक गुण है, जोकि जड़ और चेतन सभी पदार्थों में पाया जाता है । ज्ञानके संस्कार को हम भावना, कषाय के संस्कार को वासना गतिके संस्कार को वेग, और बन्ध के संस्कार को स्थिति-स्थापक कहते हैं । एक बेंत को हम हाथसे झुकाते हैं । जबतक वह हाथ से पकड़ा हुआ रहता है तबतक झुका रहता है । छोड़ने पर फिर ज्योंका हो जाता है । यह बन्धका संस्कार स्थिति-स्थापक कहलाता है ।
प्रश्न - संस्कार अगर स्वतन्त्र गुण है तो उस को न्यूनाधिक करने वाला कर्म कौन है ?
उत्तर - संस्कार का घातक कोई कर्म नहीं है । जो संस्कार जिस गुणका होता है, उस गुणके घात कर्म का उसपर प्रभाव पड़ता है ।
प्रश्न- ज्ञान, स्वयं एक गुण है । उसमें संस्कार नाम का दूसरा गुण कैसे रह सकता है ? गुण में गुण नहीं रह सकता । उत्तर - संस्कार ज्ञान का होता है, ज्ञान में नहीं होता । होता तो वह आत्मा में ही है । अगुरुलघुत्व गुण गुणोंको बिखरने नहा देता, परन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि वह गुणों में रहता है । वह द्रव्य में ही रह कर दूसरे गुणों पर प्रभाव डालता है । इसी प्रकार संस्कार भी आत्मा में रहकर ज्ञानादि गुणों पर प्रभाव डालता है । अथवा जिस प्रकार वैभाविक गुण एक स्वतन्त्र गुण है, जिसके निमित्त से सम्यक्त्व ज्ञान चारित्र आदि में विभात्र परिगति होती है, परन्तु उसका आधार ज्ञानादि गुण नहीं है, किन्तु द्रव्य है; इसी प्रकार संस्कार है ।