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मतभेद और आलोचना [२८१ प्रश्न-संस्कार पूर्व उपयोग का भले ही फल हो परन्तु वह स्मृति का कारण है, इसलिये हम उसे स्मृति के लिये लब्धिरूप माने तो क्या हानि है ! .
उत्तर-मैं कह चुका हूँ कि लब्धि किसी ज्ञानोपयोग से पैदा नहीं होती, इसलिये संस्कार को लब्धि नहीं कहा जा सकता। यदि ज्ञान का कारण होने से कोई लब्धि कहलाता है तो अवग्रह ईहा के लिये लब्धि होगा, ईहा अवाय और धारणा के लिये, धारणा स्मृति के लिये, स्मृति प्रत्यभिज्ञान के लिये लब्धिरूप होंगे। इसलिये ज्ञान का कारण होने से किसी को लब्धिरूप कहना ठीक नहीं ।
दूसरी बात यह है कि लन्धि सामान्य शक्ति है। उसमें किसी विशेष पदार्थ का आकार नहीं होता। जैसे-~आँखों से देखने का शक्ति में घटपट आदि विशेष पदार्थ का आकार नहीं रहत्ता किन्तु उसके उपयोग में रहता है । संस्कार में घटपट आदि विशेष पदार्थ का आकार रहता है, इसलिथे उसे लब्धि नहीं कहा जा सकता।
तीसरी बात यह है कि जब किसी आत्मा में संस्कार थोड़ा पड़ता है और किसी में ज्यादः पड़ता है तब इसका कारण क्या कहा जागा ! जिस प्रकार अन्य ज्ञानों की न्यूनाधिकता उनकी लब्धि की न्यूनाधिकता से पैदा होती है, उसी प्रकार संस्कार की न्यूनाधिकता भी किसी लब्धि की न्यूनाधिकता को बतलाती है । अगर संस्कार स्वयं लन्धिरूप होता तो उसे किसी दूसरी लब्धिकी आवश्यकता क्यों होती ! अगर लब्धि के लिये लब्धि की कल्पना की जायगी तो अनवस्थादोष होगा।