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मतिज्ञान के भेद
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ऊपर मूंड देखकर पानी के भीतर प्रविष्ट हाथी का ज्ञान अथवा मुखको देखकर चंद्रका ज्ञान । स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क और अनुमान इसीके भीतर हैं । निसृत-पूरा निकल जाने पर उस पदार्थ का ज्ञान । अनुक्त(१) बिना कहे अर्थात् थोड़ा कहे जाने पर पूरी बातका ज्ञान । उक्त--पूरी बात कही जानेपर पदार्थ का ज्ञान । ध्रुव - एक सरीखा ग्रहण होते रहना । अधुत्र- यूनाधिक ग्रहण होना ।
११ - बारह भेदों में बहु बहुविध, क्षिप्र, अनिसृत, अनुक्त ध्रुव, ये छ: भेद उच्च श्रेणी के हैं और बाकी छ : निम्नश्रेणीके हैं । १२ - मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता, अभिनिबोध ये सब मतिज्ञान हैं ।
१३- अश्रुतनिश्रित मतिज्ञानके भेद बुद्धि की अपेक्षा चार हैं । औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा, पारिणामिकी । ( ये चार भेद दिगम्बरसम्प्रदाय में प्रचलित नहीं हैं, लेकिन बुद्धियोंको मतिज्ञान मानने का उल्लेख दिगम्बर शास्त्रों में भी मिलता है । तत्त्वार्थ राजवार्तिक में (२) प्रतिभा, बुद्धि, उपलब्धि आदिको मतिज्ञान कहा है ) उपदेश आदि के बिना किसी विषय में नई सूझ कराने वाली बुद्धि औत्पत्तिकी [३] बुद्धि है । नन्दी सूत्र में औत्पत्तिकी
।
(१) अनुक्तमाभप्रायेग प्रतिपत्तः त० रा० १ १६-१० । (२) मतिः स्मृतिः प्रतिभाबुदुद्ध्युपलब्ध्यादयः
(३) उत्पत्तिरख न शास्त्राभ्यास कर्म परिशीलनादिकम् प्रयोजनं कारणं यस्याः सा औत्पत्तिकी । ननु सर्वस्याः बुद्धेः कारणं क्षयोपशमः तत्कथमुच्यते उत्पत्तिरेव प्रयोजनमस्याः इति उच्यते, क्षयोपशमः सर्वबुद्धिसाधारणः ततो
संज्ञा चिताभिनिबोधादयः इत्यर्थः । के पुनस्ते ?
। त० रा०
१-१३.१ ।