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मतभेद और आलोचना
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होती हैं इसलिये
प्रश्न- वर्तमान सिद्धान्त के अनुसार अंधेरे में दूर का चमकदार पदार्थ क्यों दिखाई देता है और दूसरे क्यों नहीं दिखाई देते ? उत्तर - चमकदार पदार्थ में स्वयं किरणें उसकी किरणें आँखपर पड़ती हैं। इससे उसका ज्ञान होता है । दुसरे पदार्थों में किरणें नहीं होतीं हैं, इसलिये वे दिखाई नहीं देते । जब सूर्य का उदय होता है तब उसकी किरणें उस पदार्थ पर पड़ती हैं, फिर लौटकर आँख पर पड़ती हैं इससे हमें वह पदार्थ दिखाई देता है । पारदर्शक पदार्थ पर पड़ी हुई किरणें लौटकर आँखपर नहीं पड़तीं या पूरी नहीं लौटतीं, इसलिये वह ठीक नहीं दिखाई देता । ये बातें बहुप्रचलित होने से यहाँ पर नहीं लिखी जातीं । सार यह है कि जैनियों ने आँख को जिस प्रकार अप्राप्यकारी माना है, वह वैसी नहीं है ।
इस प्रकार किसी भी जैनाचार्य के मतानुसार अवग्रह के भेदों का ठीक विवेचन नहीं हो सकता है । अगर इस समस्याको हल करना चाहें तो हमें थोड़ी थोड़ी अनेक जैनाचार्यों की बातें ग्रहण कर उन पर स्वतन्त्र विचार करना पड़ेगा । यहाँ निम्न'लिखित बातें ध्यान देने योग्य हैं ।
[१] दर्शन की वर्तमान परिभाषा ठीक नहीं है । पहिले जो मैंने 'आत्मग्रहण दर्शन है' ऐसी परिभाषा लिखी है, वह स्वीकार करना चाहिये ।
[२] अर्थावग्रह में रूप रस गन्ध स्पर्श या शब्द का सामान्य ज्ञान मानना चाहिये । विशेषावश्यक की तरह रूप अरूप से परे न मानना चाहिये |
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