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मतिज्ञान और श्रुतज्ञान
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भेद होने पर भी बुद्धि और विद्वत्ता के समान उन दोनों में भेद स्पष्ट है । मतिज्ञान स्वयं उत्पन्न ज्ञान है अर्थात् उसमें परोपदेश की आनश्यकता नहीं है, जब कि श्रुतज्ञान परोपदेश से पैदा होता हैउसमें शब्द और अर्थ के संकेत की आवश्यकता होती है ।
प्रश्न- क्या मतिज्ञान में संकेत की आवश्यकता नहीं होती ? आंखों से जब हम घड़ा देखते हैं, तब 'यह घड़ा है इस प्रकार के ज्ञान के लिये 'घड़ा' शब्द के संकेत की आवश्यकता होती है । तब इस प्रकार के मतिज्ञान को क्या हम इरुतज्ञान कहें ?
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उत्तर - यहां हमें घड़े के ज्ञानके लिये संकेत की आवश्यकता नहीं है किन्तु उसके व्यवहार के लिये है । जिसको घड़े का संकेत है, और जिसे घड़े का संकेत नहीं है दोनों ही घड़े का ज्ञान कर सकते हैं ।
प्रश्न- जब मनुष्य पैदा होता है तब उसे किसी भाषा का संकेत नहीं होता और संकेत बिना इरुतज्ञान नहीं होता, तब किसी को श्रुतज्ञान कैसे पैदा होगा, क्योंकि संकेत के बिना न तो श्रुतज्ञान होता है न श्रुतज्ञान के बिना संकेत !
उत्तर - पिछला वाक्य ठीक नहीं। क्योंकि इरुतज्ञान के लिये संकेत की जरूरत है परन्तु संकेत के लिये इरुतज्ञान अनिवार्य नहीं है । संकेत श्रुतज्ञान से भी होता है और मतिज्ञान से भी । जब हमसे कोई कहता है कि 'इस वस्तु को घड़ा कहते हैं' तब यह संकेत श्रुतपूर्वक है । परन्तु जब कोई बालक, वचन और क्रिया के