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चौथा अध्याय
सकते । इतने पर भी इस मान्यता का त्याग नहीं किया जामका, इसलिये पीछे के लेखकों ने इस बात को कल्पना की कि केवली के मनोयोग तो होता है परन्तु उपचार से होता है । उनके वास्तव में मनोयोग नहीं होता। उपचार के कारण निम्नलि. वि. बताये जाते हैं।
१-मनसहित जावों के मनपूर्वक वचनव्यवहार देखा जाता है इसलिये केवली के भी मनोयोग माना गया क्योंकि वे भी वचनव्यवहार करते हैं [१] [बोलते हैं]
२-केवली के मनोवर्गणाके स्कंध आते हैं इसलिये उनके उपचार से मनोयोग माना गया है (२) ।
ये दोनों ही कारण हास्यास्पद हैं । इन के विरोध में चार बातें कही जा सकती हैं।
१-अगर मन सहित जीवों का वचनव्यवहार मनपूर्वक होता है तो होता रहे, केवली के तो मन मानते ही नहीं, फिर उनका वचन व्यवहार मनपूर्वक क्यों माना जाय ।।
प्रश्न- केवली के भावमन नहीं माना जाता पर द्रव्यमन तो माना जाता है । मन शब्द का अर्थ यहाँ द्रव्यमन समझना चाहिये ।
उत्तर-यदि द्रव्यमन के होने से ही वचन व्यवहार में मन का योग या उपयोग मानना पड़े तो द्रव्येन्द्रिय होने से ही उनका
१ मणसहियाणं वयणं दिलु तप्पुवमिदि सजोगम्हि । उत्तो मणोवयारेणिदियणाणेण हीणम्मि । २२८ । गोम्मटसार जीवकांड। .
- २ अंगोवंगुदयादो दवमणटुं जिणंदचंदम्हि । मणवम्गणखंधाणं आगमणादो दुमणजोगो । २२९ गो०जी० ॥ ..