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चौथा अध्याय
प्रश्न- यदि ऐसा हो तो केवल तीर्थंकर या धर्मसंस्थापक ही सर्वज्ञ क्यों कहलाते हैं ? राजनीतिज्ञ, ज्योतिषी, वैद्य आदि भी सर्वज्ञ कहे जाने चाहिये, क्योंकि अपने अपने विषय में लोगों का समाधान भी कर सकते हैं ।
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उत्तर-- इस प्रश्न के चार उत्तर हैं। पहला तो यह कि वे लोग भी सर्वज्ञ कहे जाते हैं । वैद्यक ग्रन्थों में धन्वन्तरि की सर्वज्ञ रूपमें बन्दना होती है । अपने अपने विषय की सर्वज्ञता को महत्व देने की भावना भी उस विषय के विशेषज्ञों में पाई जाती है । इसीलिये नीतिवाक्यामृतकार सोमदेवसूरि लोकव्यवहारज्ञको ही सर्वज्ञ कहते है ।
दूसरा उत्तर यह है-- सर्वज्ञरूप में किसी व्यक्ति को मानने के. लिए जिस भक्ति और श्रद्धाकी आवश्यकता है वह धार्मिक क्षेत्र में ही अधिक पाई जाती है । अन्य विद्याओं के क्षेत्र में प्रत्यक्ष औरं तर्क को इतना अधिक स्थान रहता है कि उस जगह वैसी श्रद्धा की गुजर नहीं हो सकती, खासकर समष्टि तो उतनी श्रद्धा नहीं रख सकती । एकाध आदमी की बात दूसरी है ।
तीसरा उत्तर यह है कि अन्य सब विद्याओं की अपेक्षा धर्मविद्या का स्थान ऊँचा रहा है । अन्य विद्याओं का सम्बन्ध सिर्फ ऐहिक माना गया है जब कि धार्मिक विद्या का सम्बन्ध पारलौकिक भी कहा गया है और ऐहिक जीवन में भी उसका स्थान व्यापक और सर्वोच्च रहा है । इसलिये धार्मिक क्षेत्र का सर्वज्ञ भी व्यापक और सर्वोच्च वन गया ।
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चौथा उत्तर यह है कि आजकल प्रायः सभी ममुष्यों के लिए किसी न किसी धर्म से सम्बन्ध रखना पड़ा है, परन्तु अन्य