________________
१६६ ]
ater अध्याय
roadवली सामान्यतः छडे सातवें गुणस्थान में रहता है और केली तेरह गुणस्थान में । स्रुतकवली को केवली बनने के लिये आठवें गुणस्थान से बारहवे गुणस्थान तक एक श्रेणी चढ़ना पड़ती है । उस श्रेणी में जो कुछ काम होता हो वही इतकवली से केवली की विशेषता समझना चाहिये |
श्रेणी में दो कार्य होते हैं, एक तो कषायों का क्षय और दूसरा ध्यान, अर्थात् किसी वस्तुपर गम्भीर विचार | बस, कषायक्षय से होनेवाली पूर्ण वीतरागता और ध्यान से पैदा होनेवाली गम्भीरता ही केबली की विशेषता है । जबतक किसी वस्तु में थोड़ा भी राग या द्वेष होता है तबतक हम उसकी हेयोपादेयता का ठीक ठीक निर्णय नहीं कर सकते । इसलिये पूर्ण सत्य की प्राप्ति के लिये पूर्ण वीतरागता चाहिये । पूर्णवीतरागता का अनुभव करने के लिये ध्यान की आवश्यकता होती है । किसी एक ध्येय वस्तु पर पूर्णवीतरागता से उपयोग लगाना ही ध्यान है । इस ध्यान की सिद्धि ही केवलज्ञान की विशेषता है जो कि इरुतकवली में नहीं होती ।
1
प्रश्न- ध्यान में तो एक ही वस्तु का विचार किया जाता है । उस से एक ही वस्तु के सत्य की प्राप्ति होगी । इतने को पूर्ण सत्य की प्राप्ति कैसे कह सकते हैं ? अथवा क्या कोई ऐसी वस्तु है जिसकी प्राप्ति से पूर्ण सत्य की प्राप्ति होती है ?
उत्तर - किसी महल में प्रवेश करने के अगर सौ द्वार हैं तो उसमें जाने के लिए कोई सौ द्वारों में से नहीं जाता किन्तु किसी एक ही द्वार से जाता है । इसी प्रकार सत्यरूपी महल में भी एक