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चौथा अध्याय
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होता वे नियम से संघमें रहते १ हैं ।
प्रत्येक बुद्ध-ये बाह्यनिमित्तों से बुद्ध होते हैं । इन्हें पहिले कम से कम ग्यारह अंग का और ज्यादा से ज्यादा दश पूर्वका ज्ञान होता है और ये अकेले विहार करते हैं । गुरु का अवलम्बन लेकर ज्ञानी बनते हैं ।
बोधित बुद्ध - -ये ये भी अनेक तरह के होते हैं ।
मूकवली- ये उपदेश आदि नहीं देते। इनकी मुकताका कारण पहिले बताया जा चुका हैं
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रुतवली - ये वास्तव में केवली नहीं हैं किन्तु गणधर - रचित शास्त्रों के या तीर्थंकर के उपदेश के पूर्णज्ञाता होते हैं ।
केवलज्ञानी हैं वे
समान होने पर भी
बाह्यज्ञान की यह
। इसलिये कोई कोई
इन भेदों से मालूम होता हैं कि जितने चारित्र की दृष्टि से और आत्मज्ञान की दृष्टि से बाह्यज्ञान या श्रुतज्ञान में न्यूनाधिकता रखते हैं न्यूनाधिकता केवलज्ञान होने पर भी रहती है केवल उपदेश नहीं देते, कोई संघ में मिलकर रहते हैं,
।
आदि ।
कहे जा
पि स्वयं बुद्धादिक तीन भेद अकेवली मुनियों के भी सकते हैं परन्तु ये केवली के भी होते हैं। यहां उन्हीं से मतलब है । [ संघम कंवलियाका स्थान ]
शास्त्रों में तीर्थंकरों के परिवारका जहाँ भी वर्णन आता है । उसमें केवलियों का जो स्थान है उससे केवलज्ञान के स्वरूप पर
(१) - अन्य पूर्वाधीतं श्रुतं न भवति तर्हि नियमाद्गुरुसन्निधौ गना लिंग प्रतिपद्यते, गच्छं च अवश्यं न मुश्चति ।