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सर्वज्ञत्व की जाँच
मान कर म. महावीरका शिष्यत्व छोड़ दिया । बहुत दिनों तक प्रियदर्शना एक हजार आर्यिकाओं का नेतृत्व करती हुई जमालि की अनुयायिनी रहीं । बाद में एकबार ढंक नामक एक कुम्हार ने बड़ी चतुराई से प्रियदर्शना के पक्ष की गल्ती सिद्ध की जिससे प्रियदर्शना ने जमालिका पक्ष छोड़ दिया और सब आर्थिकाओं को लेकर फिर म. महावीर की शिष्यता स्वीकार की । अन्य मुनि भी जमालिका साथ छोड़कर फिर म. महावीर के पास लौट आये ।
इस चर्चा में बहुतसी ध्यान देने योग्य बातें हैं-
१ - जैनशास्त्र के अनुसार यदि सर्वज्ञका अर्थ त्रिकालत्रिलोक-दर्शी माना जाय तो म. महावीर की पुत्री एक हज़ार आर्यिकाओंकी नायिका म. महावीर को छोड़कर जमालिका पक्ष कभी न लेती । जमालि अपने पक्ष को सत्य कह सकता था और प्रियदर्शना आदि को धोखा देकर अपने पक्ष में ले सकता था । परन्तु अगर वह अपने को त्रिकालत्रिलोकदर्शी कहता तो अपने मनकी बात पूछकर या और कोई आड़ा टेढ़ा प्रश्न पूछकर उसकी सर्वज्ञता की जाँच हो जाती, और प्रियदर्शना आदि को धोखा न खाना पड़ता ।
२ - सर्वज्ञतीर्थंकरों के पास करोड़ों देव आते हैं, उनका रत्नमय समवशरण देब बनाते हैं । इसके अतिरिक्त उनके अनेक अतिशय होते हैं । ऐसी हालत में म. महावीर के वे अतिशय जमाI लिक पास नहीं हो सकते थे । इसलिये प्रियदर्शनाको यह भ्रम कभी नहीं हो सकता था कि म. महावीर जिन नहीं हैं और जमालि जिन है । इसलिये यह स्पष्ट समझ में आता है कि तीर्थकर, केवली आदि के बाह्य अतिशय भक्तिकल्प्य हैं ।