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शंकाएँ
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परमाणु तक जान सकता है । मन:पर्यय इससे ज्यादः सूक्ष्म क्या होगा ? अवधिज्ञानी सभी भौतिक पदार्थोंका प्रत्यक्ष कर सकता है, परन्तु मन:पर्यय ज्ञानी मनके सिवाय अन्य पदार्थोंका प्रत्यक्ष नहीं कर सकता । द्रव्य मनका प्रत्यक्ष अवधिज्ञानी भी कर सकता है, फिर मन:पर्ययज्ञानीकी विशेषता क्या है ? मनकी अपेक्षा कर्म बहुत सूक्ष्म है | अवधिज्ञानी जब कर्मों का प्रत्यक्ष करलेता है, तब वह मनका भी प्रत्यक्ष करसकेगा ।
(४) मन:पर्यय ज्ञान सिर्फ मुनियों के ही क्यों होता है : भौतिक पदार्थो के ज्ञानके लिये महाव्रत अनिवार्य क्यों है ? (वस्तुस्वभाव ऐसा है, दूसरोंमें योग्यता नहीं है, आदि अन्धश्रद्धागम्य उत्तरोंकी यहाँ जरूरत नहीं है ) ।
(५) मतिज्ञान के ३३६ भेदों में अनिःसृत और अनुक्तभेद भी आते हैं जिनमें एक पदार्थ से दूसरे पदार्थका ज्ञान किया जाता है । इसलिये श्रुत को मतिज्ञान के भीतर शामिल क्यों नहीं करलिया जाता ? संज्ञा, चिंता, अभिनिबोध मतिज्ञान हैं परन्तु इस में एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ का ज्ञान होता है, इसलिये उन्हें श्रुतज्ञान क्यों
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न कहा जाय ?
(६) अर्थसे अर्थान्तारके ज्ञानको अगर श्रुत ज्ञान कहा जाय तो श्रुतज्ञान के भेदों में फिर शास्त्रोंके ही भेद क्यों गिनाये गये ? शास्त्रज्ञानसे दूसरी जगह भी अर्थसे अर्थान्तर का ज्ञान होसकता है ।
(७) जिसप्रकार मतिज्ञान से जाने हुए पदार्थों पर विचार करने से श्रुतज्ञान होता है उसीप्रकार अवधिज्ञान से जाने हुए पदार्थों