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पाँचवाँ अध्याय
उत्तर--१ तत्र तो एक ही समय में
दर्शन और ज्ञान दोनों उपयोग मानना पड़ेंगे। परन्तु 'एक समय में दो उपयोग नहीं हो सकते ' इस वाक्य से विरोध होगा। दूसरी बात यह है, ज्ञान और दर्शन दोनों अप्रमाण हो जायेंगे । क्योंकि सामान्यरहित विशेष कुछ काम नहीं कर सकता, इसलिये वह अवस्तु है । इतना ही नहीं, किन्तु अवस्तु का ग्रहण भी नहीं हो सकता क्योंकि अवस्तु में कर्तृकर्मरूपका अभाव है । इसी प्रकार दर्शन भी अप्रमाण हो जायगा, क्योंकि विशेषरहित सामान्य भी अवस्तु है 1
प्रश्न -२ प्रमाण न माने तो ?
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उत्तर---३ यह ठीक नहीं, क्योंकि प्रमाण के अभाव में सारे जगत्का अभाव हो जायगा ।
प्रश्न- ४ हो जाय !
उत्तर -- ५ यह भी ठीक नहीं, क्योंकि जगत् अभावरूप उपलब्ध नहीं होता । इसलिये सामान्यविशेषात्मक बाह्यार्थ ग्रहण ज्ञान और सामान्य विशेषात्मक स्वरूप ग्रहण दर्शन सिद्ध हुआ ।
१ इतिचेन्न ' हंदि दुवे माथि उवजोगा ' इत्यनेन सह विरोधात । अपि च न ज्ञानं प्रमाणं सामान्यव्यतिरिक्तविशेषस्य अर्थक्रियाकर्तृत्वं प्रति असमर्थत्वतः अवस्तुनो ग्रहणात् । न तस्य ग्रहणमपि सामान्यव्यतिरिक्ते विशेषं द्यवस्तुनि कर्तृकर्म रूपाभावात् । तत एव न दर्शनमपि प्रमाणं ।
२ अस्तु प्रमाणाभावः ।
३ इतिचेन्न प्रमाणाभावे सर्वस्याभावप्रसङ्गात् ।
४ अस्तु ।
५ इतिचेन्न तथानुपलम्भात् । ततः सामान्यविशेषात्मकबाह्यार्थग्रहणं ज्ञानं तदात्मकस्वरूप प्रहणं दर्शनमिति सिद्धं ।