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विविध केवली
[१७१ जैनशास्त्रों में अनेक तरह के केबलियों का उल्लेख आता है। सुभीते के लिये उन सबका संक्षिप्त परिचय दिया जाता है।
तीर्थकर-- ये धर्मतीर्थ के संस्थापक होते हैं । जगत् की समस्याओं का स्वयं अनुभव से अध्ययन करते हैं, अनुभव से ही उसका उपाय सोचते हैं । फिर वीतराग और परमज्ञानी होकर धर्मसंस्थापक बनते हैं । इनका कोई गुरु नहीं होता । इनसे बढ़कर पद किसी का नहीं माना जाता । ये परम सुधारक होते हैं । इनके अनुभव का इतिहास विशाल होता है ।।
गणधर- ये तीर्थकर के साक्षात् शिष्य होते हैं, इन्हें तीर्थकरके दाहिने हाथ कहना चाहिये । ये गण के नायक कहलाते हैं । यद्यपि ये इस्तकेवली होते हैं फिर भी इनका महत्व केवलियों से भी अधिक होता है । इनके सैकड़ों शिष्य केवली होते हैं । तीर्थकर के व्याख्यानोंका संग्रह करना इन्हीं का काम है । अन्त में ये भी केवली हो जाते हैं।
सामान्य केवली- तीर्थकर और गणधरों को छोड़कर बाकी केवली सामान्य केवली कहलाते हैं । ये अनेक तरह के होते हैं |
स्वयं-बुद्ध-बाह्यनिमित्तों के बिना जो ज्ञानी होते हैं वे स्वयंबुद्ध हैं । तीर्थंकर भी स्वयंबुद्धों में १ शामिल हैं । इनक अतिरिक्त भी स्वयंवुद्ध होते हैं । ये संघ में रहते हैं और नहीं भी रहते । ये पूर्वमें श्रुतकेवली होते हैं और नहीं भी होते २ हैं। जिनको रुत नहीं
[१] स्वयमेव बाह्य प्रत्ययमन्तणैव निजजातिस्मरणादिना सिद्धा स्त्रयंबुद्धा ते च द्विधा तीर्थकराः तीर्थकरव्यतिरिक्ताश्च । नन्दिवृत्तिः ।
(२ - स्वयंबुद्धानां पूर्वाधीतं श्रुतं भवति न वा । नन्दीदात्ते ।