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वास्तविक अर्थका समर्थन [१६९ श्रुतकेवली होगा। उपर्युक्त राजमार्ग के अनुसार यही बात कहना चाहिये । परन्तु आगे चलकर लिखा गया है कि निर्ग्रन्थ के ज्यादः से ज्यादः श्रुत चौदह पूर्व तक होता है और कम से कम अष्ट प्रवचन मातरः (सिर्फ पाँच समिति तीन गुप्तिका ज्ञान)। यहाँ विचारणीय बात यह है कि जब इतकेवली बने बिना निर्ग्रन्थ नहीं बनता तब सिर्फ समिति-गुप्ति-ज्ञानी निर्ग्रन्थ मुनि कैसे होगा ? इससे मालम होता है कि राजमार्ग के अनुसार तो श्रुतकेवली ही निर्ग्रन्थ बनता है और पीछे वही केवली हो जाता है और अपवाद के अनुसार साधारण ज्ञानी भी श्रेणी चढ़कर केवली होते हैं । इसीलिये समितिगुप्तिज्ञानी भी निग्रन्थ बनते हैं, और ध्यान की सिद्धि होनेपर केवली हो जाते हैं।
प्रश्न-आपके कहने से मालूम होता है कि केवलज्ञान से अनुभव में वृद्धि होती है, न कि विषय के विस्तार में । ऐसी हालत में जब जघन्य या मध्यम ज्ञानी निर्ग्रन्थ, कवली बनता होगा, तब उसका ज्ञान, इरुतकेवली बनकर केवली बननेवालों की अपेक्षा कम रहता होगा । इतना ही नहीं किन्तु अन्य इतकेवली की अपेक्षा भी उसका ज्ञान कम होता होगा। क्या किसी केवली का ज्ञान श्रुतकेवली से भी कम हो सकता है ?
उत्तर--आत्मसाक्षात्कार और ज्ञान की निर्मलता की दृष्टिसे केवलियों में न्यूनाधिकता नहीं होती किन्तु बाह्मज्ञान की अपेक्षा न्यूनाधिकता होती है । इस बातको मैं दर्पण आदि के उदाहरण देकर साबित कर आया हूँ। इसी दिशा में रुतकेवली से भी किसी किसी केक्ली का बाह्यज्ञान कम हो सकता है ।