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१६२ ] बौथा अध्याय
प्रश्न--यदि अपराविद्या के क्षेत्र में केवली और इतकेवली दोनों बराबर हैं तो धर्मप्रचार का कार्य दोनों एक सरीखा कर सकते होंगे या उनके इस कार्य में कुछ अन्तर है ?
उत्तर--अनुभव से निकलनेवाले वचनों का प्रभाव और मूल्य बहुत अधिक होता है । इसलिये केक्ली अधिक जगदुद्धार कर सकते हैं । केवली का ज्ञान, मर्म तक पहुँचा हुआ होता है। रुत केवली शास्त्र के अनुसार बोलता है और केवली के बोलने के अनुसार शास्त्र बनते हैं । केवली को यह देखने की आवश्यकता नहीं है कि शास्त्र क्या कहता है; जब कि इतकेवली अपने वक्तव्य के समर्थन में शास्त्र की दुहाई देता है । दोनों की योग्यता के इस अन्तर से समाज के ऊपर पड़नेवाले प्रभाव में भी अन्तर पड़ता है।
प्रश्न--कोई मनुष्य शास्त्र की पर्वाह नहीं करता । क्या उस आप केवली कहेंगे ? अथवा कोई शास्त्रज्ञान के साथ अनुभव से भी काम लेता है तो क्या उसे आप केवली कहेंगे ?
उतर--एक परम्योगी कपड़ों की या वेषभूषा की पर्वाह नहीं करता और एक पागल भी नहीं करता, तो दोनों एक सरीखे नहीं हो जाले । शास्त्र की लापर्वाही अज्ञान से भी होती है और उत्कृष्ट ज्ञानसे भी होती है । इसलिये शास्त्र की लापर्वाही से ही कोई केवली नहीं हो जाता; वह लापर्वाही अगर ज्ञानमूलक हो तभी वह केवली कहा जा सकता है। शास्त्रज्ञान के साथ थोड़ा बहुत अनुभव तो प्रायः सभीको होता है, परन्तु जबतक वह अनुभव पूर्ण और व्यापक नहीं हो जाता तबतक कोई केवली नहीं कहला सकता । केरलबहान अनन्त