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केवली और मन [१२१ महावीर ने कहा है----विजयादिषु देवा मनुष्यभवमास्कदन्तः कियतीर्गत्यागतीः विजयादिषु कुर्वन्ति इति गौतम प्रश्ने भगवतोक्तम। राजवार्तिक ४-२६-५)
इससे भी स्पष्ट है कि केवली प्रश्नों का उत्तर देते हैं अर्थात् वातालाप करते हैं।
(ङ) अनन्तवीर्य केवली की सभा में उनमें एक शिष्यने केवली से अनुरोध किया है कि सब लोग धर्म सुनना चाहते हैं, आप उपदेश दें। तब केवली ने उपदेश दिया (१) । मतलब यह कि शिष्य के अनुरोध को सुनकर उनने व्याख्यान दिया।
(च) देशभूषण कुलभूषण को केवलज्ञान होने पर रामचन्द्रजी प्रश्न पूछते हैं और केवली उत्तर देते हैं [ पद्मपुराण ३९ वाँ पर्व ] । रामचन्द्रजी अनेकबार बीच बीचमें प्रश्न पूछते हैं और केवली व्याख्यान का क्रम बदल करके भी रामचन्द्रजी का समाधान करते हैं।
[छ ] शिवंकर उद्यान में भीम केवली के पास कुछ देवांगनाएँ आती हैं और केवली से पूछती हैं कि हमारा पहिला पति मर गया है, अब बताइये हमारा दूसरा पति कौन होगा ? केवली कहते
ततश्चतुर्विधदेवास्तग्भिर्म जैस्तथा । कृतशंसमुनिश्रेष्ठःाश येणैव मपृच्छयत ॥ भगवन् । ज्ञातुमिच्छन्ति धर्मा धर्मफजनाः । समस्ता मुक्तिहेतुं च तत्सर्व वक्तुमर्हथ ॥ ततः मुनिपुणं शुद्धं विपुलार्थ मिताक्षरं । अप्रधृष्यं जगौ वाक्यं यतिः सर्वहितप्रियं ॥ १४-१७ पद्मपुराण । मिताक्षर विशेषण से यह भी मालूम होता है कि केवली की वाणी निरक्षरी नहीं होती।