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केवली और मन [ १२७ होना चाहिये । अगर उपयोग की स्थिरता का नाम ध्यान हो तो केवली के जीवन भर ध्यान रहे और सिद्धो के भी ध्यान माना जाने लगे । पर यह बात जैनशास्त्र भी नहीं मानते इसलिये ध्यान का वही लक्षण लेना उचित है जो जैनशास्त्रों में साधारणत: लिया जाता है । जिन आचार्यों ने उस अर्थ को बदलने की खींचातानी की है उससे यही मालूम होता है वे भी समझने लगे थे कि केवली के ध्यान मानने से सर्वज्ञता नष्ट होती है। इसीलिये उनने यह खींचातानी की सच बात तो यह है कि केवली के भी ध्यान तथा सोचना, विचारना, आदि मनुष्योचित सभी क्रियाएँ होती हैं परन्तु जब अन्धभक्ति के कारण लोग केवलज्ञान के स्वरूप को भूलकर उसके विषय में अटपटी कल्पना करने लगे और जब शास्त्रीय वर्णनों से अटपटी कल्पना का मेल न बैठा तब मेल बैठने के लिये वास्तविक घटनाओं को उपचरित कहना शुरू कर दिया गया, अथवा ध्यान की परिभाषाएँ बदली गईं । यह लीपापोती साधारण लोगों को भले ही धोखादे परन्तु एक परीक्षक को धोखा नहीं दे सकती।
केवली के अन्य ज्ञान ___ इस विवेचन से पाठक समझ गये होंगे कि केवली के मन होता है, वे मन से विचार करते हैं आदि । इस से सिद्ध है कि केवली त्रिकाल त्रिलोक के पदार्थों का एक साथ प्रत्यक्ष नहीं करते हैं ।
पहिले शब्दालपुत्र के साथ भगवान महावीर की बातचीत का उल्लेख किया गया है । उससे मालूम होता है कि केवली मानसिक विचार ही नहीं करते, किन्तु वे आँखों से देखते भी हैं, कानों