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केवली के अन्य ज्ञान [१४३ पड़ेगा। इसलिये पाँचों निद्राओं को दर्शनावरण के भीतर डालने की कोई जरूरत नहीं है । दर्शनावरण के नवभेदों की मान्यता बहुत प्राचीन और सर्व जैनसम्प्रदाय सम्मत होने पर भी मौलिक नहीं हो सकती, क्योंकि उपर्युक्त विवेचन से वह आगमाश्रित युक्तियोंके भी विरुद्ध जाती है। इसलिये दर्शनावरणी नाश हो जाने से केवली को नींद नहीं आती, यह मान्यता मिथ्या है, भक्तिकल्प्य है ।
प्रश्न--प्रमाद के पंद्रह भेद हैं [चार विकथा, चार कषाय पाँच इन्द्रिय, निद्रा, प्रणय ] इनमें निद्रा भी है। केवली के अगर निद्रा हो तो प्रमाद भी मानना पड़ेगा, किन्तु प्रमाद तो छटे गुणस्थान तक ही रहता है और केवली के तो कम से कम तेरहवाँ गुणस्थान होता है । तेरहवें गुणस्थान में प्रमाद कैसे माना जा सकता है ?
उत्तर-उपर्युक्त पन्द्रह भेद प्रमाद के द्वार हैं । जब प्रमाद होता है तब वह इन द्वारोंसे प्रकट होता है । इन द्वारों के रहने से ही प्रमाद साबित नहीं हो जाता । उदाहरणार्थ, प्रमाद के भेदों में कषाय भी है परन्तु कषाय तो दसवें गुणस्थान तक रहती है, किन्तु प्रमाद छठे गुणस्थान तक ही रहता है । इसका मतलब यह हुआ कि सातवें से दसवें गुणस्थान तक जो कषाय है वह प्रमादरूप नहीं है । इसी प्रकार तेरहवें गुणस्थान की निद्रा भी प्रमादरूप नहीं है । जिससे कर्तव्य की विस्मृति हो, अच्छे कार्य में अनादर हो, मनवचन कायकी अनुचित प्रवृत्ति हो उसे प्रमाद (१) कहते हैं । जो कथा, (१) प्रमादः स्मृत्यनवस्थानं कुशलेवनादरोयोगदुष्प्रणिधानं च
(स्कोपलतत्त्वार्थ भाष्य ८-१) स च प्रमादः कुशले बनादरः मनसोप्रणिधानं (तत्त्वार्थ राजवार्तिक ८-१-३)
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