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केवली के अन्य ज्ञान [१४५ भाजन वगैरह भी सिद्ध हैं। इससे उनके अन्य ज्ञान भी सिद्ध हुए।
इस प्रकार जब केवली के अन्य ज्ञान सिद्ध हुए तब यह बात भी समझ में आती है कि केवलज्ञान और अन्य ज्ञानों के विषय में अन्तर है । केवलज्ञान सब से महानशान है परन्तु मति त आदि उससे जुद हैं । उनका विषय भी केवलज्ञान से जुदा है । जिस प्रकार सर्वावधि ज्ञान से हम उन सब चीजों को देख सकते हैं जिनको आँखों से देख सकते हैं फिर भी आँखों का कार्य सर्वावधि से जुदा है, उसी प्रकार मति आदि का कार्य भी केवलज्ञान से जुदा है । यहाँ इतनी ही बात ध्यान में रखना चाहिये कि केवलज्ञान और मति आदि ज्ञानों के विषय स्वतन्त्र हैं। केवलज्ञान क्या है और उसका विषय कितना है, यह बात तो आगे कही जाया।
त्रिकाल त्रिलोक के युगपत् और सार्वकालिक प्रत्यक्ष को केवलज्ञान कहने में अनेक सच्ची और आवश्यक घटनाओं को कल्पित कहना पड़ा है और उनका अभाव तक मानना पड़ा है। इसी कारण उनके वास्तविक मनोयोग को उपचरित मानना पड़ा, उनकी भाषा निरक्षरी आदि विशेषणों से जकड़ी गई, यहाँ तक कि प्रश्नों का उत्तर देना भी उनके लिये असम्भव हो गया; उनके वास्तविक ध्यान को भी उपचरित कहना पड़ा, भोजन का अभाव, निद्राका अभाव, भोगान्तराय आदि कर्मप्रकृतियों के नाश की निष्फलता, परिपहों का अभाव आदि सब बातें इसीलिये कहना पड़ी हैं, जिससे केवली सदा त्रिकाल त्रिलोक के युगपत् प्रत्यक्षदर्शी कहलाएँ। इस प्रकार एक कल्पना की मिथ्यापुष्टि के लिये हज़ार कल्पनाएँ करना